सोमवार, 4 अगस्त 2008

तुमसे कुछ कहने को दिल चाहता है....

जानम तुम मेरे सीने से लग जाया करो,
मेरी साँसों में बसो, मेरे दिल को धडकाया करो।
मैं बेजान सा हो जाता हूँ तेरे जाने के बाद,
तुम्हें मेरे पहलू से उठ के तो यूँ न जाया करो।
हमारे प्यार को कहीं दुश्मनों की नज़र न लग जाए,
इसलिए रोज़ अपनी आँख में काजल तो लगाया करो।
दिन रात मैं बस तुम्हारे ही लिए गीत रचता हूँ ,
उन् रचे गीतों को दिन रात तुम गुनगुनाया करो।


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वो दिल में मेरे रहता है, मेरा सारा दर्द वो सहता है।
जब भी उसे तकलीफ होती है, चुप चुप आहें भरता है।
वो कह नही पाता है मुझसे ,की प्यार बहुत वो करता है।
वो चाँद मेरे मन आँगन का, हर वक्त वो रोशन रहता है।
वो चंदन की खुशबु बन कर जीवन मेरा महकता है।
वो मेरे दिल में रहता है…*****************************************************************
उतर के आई है धरती पे जैसे कोई हूर,
आँख से निकले जिसके अजब सा नूर।
चेहरा जिसका ग़ज़ल अजंता की,
खुशबु बदन की जगाये है सुरूर।
मैं हेर वक्त उसमे खोया रहता हूँ,
वो होती है पास या रहती है दूर।
उसकी मासुमिअत के क्या कहने,
खरगोश की नाज़ुकी जैसे मशहूर।
वो तो मेरे दिल की धड़कन है ,
वो मेरा स्वाभिमान , वो मेरा गुरुर.
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3 टिप्‍पणियां:

राजीव रंजन प्रसाद ने कहा…

तीनों ही रचनायें बेहतरीन हैं। इन कोमल संवेदनाओं के बेहतरीन प्रस्तुतिकरण के लिये बधाई स्वीकारें..


***राजीव रंजन प्रसाद

www.rajeevnhpc.blogspot.com
www.kuhukakona.blogspot.com

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत उम्दा हैं तीनों ही रचनाऐं.

Nitish Raj ने कहा…

Good one, सुंदर...अति उत्तम।।।।