रविवार, 3 अगस्त 2008


तुम्हारी आँख से काजल चुरा लूँ, आ तुझे तुझसे चुरा लूँ।

तेरे लिए गीत बुनता हूँ हर घड़ी, तू कहे तो साज से सरगम चुरा लूँ।

आ तुझे दिल में छुपा लूँ, आ मैं तुझे तुझको दिखा दूँ...।

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सरसों सी पीली धूप खिली, ठंडी मस्त हवा है चली,

फूल फूल और पत्ते पत्ते पर दिलकश रौशनी है जली ।

सुबह कोयल की कूक सुन मुझे तेरी कमी है खली.

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तेरी नींद उड़ने को जी चाहता है, ख्वाबों में तेरी आने को जी चाहता है।

रात भर तेरे पहलु में बैठ, कुछ गीत गुनगुनाने को जी चाहता

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दिल की चौखट पे एक दीप जला रखना है,

तेरे आने का अरमान सजा रक्खा है।

तेरे जाने से जो धूल सी उठ चली थी ,

मैंने उस धूल को आंखों में बसा रक्खा है।

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आंखों में तेरी तस्वीर सजाये बैठे हैं, दिल में तेरा ख्याल छुपाये बैठे हैं।

आ भी जाओ की देखने को दिल करता है , कई दिनों से पलकें बिछाये बैठे हैं।

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2 टिप्‍पणियां:

तरूश्री शर्मा ने कहा…

तुम्हारी आँख से काजल चुरा लूँ, आ तुझे तुझसे चुरा लूँ।
तेरे लिए गीत बुनता हूँ हर घड़ी, तू कहे तो साज से सरगम चुरा लूँ।
सुंदर लिखा है... कुछ कुछ फिल्मी, किशोरावस्था सी ताजगी और उनींदेपन सा....
अच्छा।

ghughutibasuti ने कहा…

बहुत सुन्दर भाव हैं।
घुघूती बासूती