मद भरे नयन तोरे कारे हैं कजरारे हैं ।
देखे जो इनको वो अपना सब हारे हैं।
श्वेत श्याम रतनार छलक जाय रसधार,
लटपटात चलत जो चितवत इक बारे हैं।
अधर गुलाब की खिली हुयी दो पंखुड़ी,
देख देख जिसको सब होय मतवारे हैं ।
चाँद जैसे मुखड़े पे बिंदिया लगे है ज्यूँ ,
रक्त वर्णी सूरज ज्यूँ सागर में उतारे हैं।
जित जित रक्खे पाँव जमीं पे वो सुन्दरी,
हरसिंगार ने उत उत सारे फूल झाड़े हैं ।
एक झलक जिसे भी जी भर वो देख ले,
उसके जीवन से होय दूर अंधियारे हैं ।
जादू सा करे है रूप रंग उसका नीहार,
उसकी ही खुशबू में सब कुछ बिसारे हैं।
-नीहार ( चंडीगढ़ की ठिठुरती शाम और एक बेसाख्ता खयाल , दिनांक 15 फरवरी 2014)
देखे जो इनको वो अपना सब हारे हैं।
श्वेत श्याम रतनार छलक जाय रसधार,
लटपटात चलत जो चितवत इक बारे हैं।
अधर गुलाब की खिली हुयी दो पंखुड़ी,
देख देख जिसको सब होय मतवारे हैं ।
चाँद जैसे मुखड़े पे बिंदिया लगे है ज्यूँ ,
रक्त वर्णी सूरज ज्यूँ सागर में उतारे हैं।
जित जित रक्खे पाँव जमीं पे वो सुन्दरी,
हरसिंगार ने उत उत सारे फूल झाड़े हैं ।
एक झलक जिसे भी जी भर वो देख ले,
उसके जीवन से होय दूर अंधियारे हैं ।
जादू सा करे है रूप रंग उसका नीहार,
उसकी ही खुशबू में सब कुछ बिसारे हैं।
-नीहार ( चंडीगढ़ की ठिठुरती शाम और एक बेसाख्ता खयाल , दिनांक 15 फरवरी 2014)
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