शनिवार, 4 जून 2011

क्षणिकाएं

रुई के फाहे पहने थी -
जब पेड़ों की हर डाल,
मौसम के मिजाज़ की खबर -
मुझको ठंडी हवाओं ने दी।
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बर्फ से जब भाप -
उठती देखा तो ये सोचा मैंने,
उसके सीने में भी-
कोई आग धधकती तो है।
*******************************
बस तेरा ख्याल पूनो के चाँद सा -
खिला रहा था रात को....
वरना, जिंदगी में अँधेरे के सिवा -
कुछ भी नहीं...
*********************************
यूँ सुलगती है आग,
तेरी यादों की कुछ इस तरह -
जैसे पहाड़ों पे जमे बर्फ,
सूरज की रौशनी में सुलग जाते हैं।
**************************************
मैं तुम्हे छूता हूँ ,
तो आग हो जाता हूँ -
वरना, मेरे भीतर कुछ नहीं,
है बस राख के सिवा।
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दीवार पे सर पटक कर,
कह रहा है खुद से वो -
अपने भीतर के सर्प(दर्प) का,
यूँ फन कुचल रहा हूँ मैं।
*********************************************
सूरज हूँ -
धूप उगलता हूँ....
दूसरों की खातिर मैं -
अपनी ही आग में जलता हूँ।

- नीहार

22 टिप्‍पणियां:

विभूति" ने कहा…

bhut khubsurat panktiya...

vandana gupta ने कहा…

बेहद खूबसूरत क्षणिकायें।

Vaanbhatt ने कहा…

सूरज हूँ -
धूप उगलता हूँ....
दूसरों की खातिर मैं -
अपनी ही आग में जलता हूँ।

बहत ही सुन्दर क्षणिकाएं...

बेनामी ने कहा…

Vijay ji ...."Arthpurn khsanikaayen" behad pasand aayei. aapke blog par aakar bahut achha lagaa. Iske liye apka Abhaar.

Vivek Jain ने कहा…

सूरज हूँ -
धूप उगलता हूँ....
दूसरों की खातिर मैं -
अपनी ही आग में जलता हूँ।

बहत ही सुन्दर
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

रश्मि प्रभा... ने कहा…

यूँ सुलगती है आग,
तेरी यादों की कुछ इस तरह -
जैसे पहाड़ों पे जमे बर्फ,
सूरज की रौशनी में सुलग जाते हैं।
*******************************bahut hi gahre bhaw, dil ko chhute hue

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

हर क्षणिका बहुत गहन अर्थों को समेटे हुए ... बहुत अच्छी लगीं

Anupama Tripathi ने कहा…

सूरज हूँ -
धूप उगलता हूँ....
दूसरों की खातिर मैं -
अपनी ही आग में जलता हूँ।

बहुत सुंदर क्षणिकाएं हैं ..!!
गहन अभिव्यक्ति लिए हुए ..!!
badhai.

ZEAL ने कहा…

बस तेरा ख्याल पूनो के चाँद सा -
खिला रहा था रात को....
वरना, जिंदगी में अँधेरे के सिवा -
कुछ भी नहीं...

Beautiful expression !

.

prerna argal ने कहा…

मैं तुम्हे छूता हूँ ,
तो आग हो जाता हूँ -
वरना, मेरे भीतर कुछ नहीं,
है बस राख के सिवा।bahut sunder bhav liye chadikayen.dil ko choo gai.badhaai sweekaren.


please visit my blog .thanks

वाणी गीत ने कहा…

सभी क्षणिकाएं बेहतरीन हैं !

udaya veer singh ने कहा…

abhvyakti ka unnat prabodh pyara laga ---
बर्फ से जब भाप -
उठती देखा तो ये सोचा मैंने,
उसके सीने में भी-
कोई आग धधकती तो है।
aabhar .

Udan Tashtari ने कहा…

उम्दा क्षणिकायें...

निवेदिता श्रीवास्तव ने कहा…

प्रभावी क्षणिकायें ........

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सभी लाजवाब ... और अंत वाली सूरज वाली .... बहुत गहरी बात कह जाती है ....

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

सभी क्षणिकाएँ अर्थपूर्ण , भावपूर्ण .......सम्प्रेषण क्षमता अप्रतिम

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत ख़ूबसूरत क्षणिकायें..

रंजना ने कहा…

सूरज हूँ -
धूप उगलता हूँ....
दूसरों की खातिर मैं -
अपनी ही आग में जलता हूँ।

...

बस

वाह वाह वाह...

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

सूरज हूँ -
धूप उगलता हूँ....
दूसरों की खातिर मैं -
अपनी ही आग में जलता हूँ।

सभी क्षणिकाएं लाजवाब....

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

प्रत्येक क्षणिका बहुत ध्यान से पढने को बाध्य कर दिया आपने.लाजवाब क्षणिकाएं.

Amrita Tanmay ने कहा…

कहीं न कहीं छु गयी दिल को प्रत्येक क्षणिका .अति सार्थक और प्रभावशाली ढंग से भावों को रेखांकित किया है. प्रशंग्सनीय प्रस्तुती..

Vijuy Ronjan ने कहा…

Aap sabon ko sarahna ke liye shatshah dhanyavaad.