सोमवार, 13 जून 2011

क्षणिकाएं -2

वो आँख में जलता है -
तो आंसू हो जाता है ,
आग को पानी होते हुए-
कई बार मैंने देखा है।
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जब भी मैं तुम्हारी नज़रों में -
उठने की कोशिश करता हूँ,
अपनी ही नज़रों से गिर जाता हूँ
अश्रु हरदम अधोमुखी होते हैं ।
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आज कल वो अपनी पलकें -
खोलता नहीं,
उसे पता है-
मुझे उसकी आँखों में कैद होना ,
अच्छा लगता है।
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बस यूँ ही -
करवट बदलते,
मेरी रात गुजरी है...
तकिये की सिलवटों में -
मैं अपने चेहरे की,
झुर्रियां ढूंढता रहा।

9 टिप्‍पणियां:

vandana gupta ने कहा…

बेहद उम्दा क्षणिकायें…………एक से बढकर एक हैं।

संध्या शर्मा ने कहा…

आज कल वो अपनी पलकें -
खोलता नहीं,
उसे पता है-
मुझे उसकी आँखों में कैद होना ,
अच्छा लगता है।

क्षणिकायें एक से बढकर एक सुन्दर लेकिन इसका तो जवाब नहीं लाजवाब.....

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

हर क्षणिका गज़ब की ...

बस यूँ ही -
करवट बदलते,
मेरी रात गुजरी है...
तकिये की सिलवटों में -
मैं अपने चेहरे की,
झुर्रियां ढूंढता रहा।

बहुत सुन्दर भाव

रश्मि प्रभा... ने कहा…

बस यूँ ही -
करवट बदलते,
मेरी रात गुजरी है...
तकिये की सिलवटों में -
मैं अपने चेहरे की,
झुर्रियां ढूंढता रहा।... in karwaton ko wahi janenge , jo talashte hain apna chehra waqt ke haashiye per

विभूति" ने कहा…

bhut hi khubsurat panktiya hai...

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

Behtreen Kshanikayen......

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....


परखना मत ,परखने से कोई अपना नहीं रहता ,कुछ चुने चिट्ठे आपकी नज़र

--

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

क्षणिकाओं में सुन्दर बिम्ब लिए हैं.हर क्षणिका बेमिसाल.

Suman ने कहा…

sabhi rachnaye sunder hai ......