सोमवार, 30 मई 2011

हिम अच्छादित शिखर सलोना...

हिम आच्छादित शिखर सलोना,
हुआ आह्लादित हृदय का कोना,
बन कर तुरंग मन सरपट भागे,
उछले कूदे बन कर मृग छौना।।
कल कल नदिया है बहती जाती,
सरगम के सप्त सुर हमें सुनाती,
सूरज की किरने जाती नाच नाच ,
मौसम हो जाता बसंत सुहाना ।
मन ठगा ठगा रह जाता है जब,
सूरज पहाड़ों के पीछे छुप जाता,
फिर आकाश के सूने आँगन में,
निखर जाता बन चाँद सलोना।
मन आवारा बादल है बन कर ,
भटक रहा देखो नील गगन में,
प्रकृति है सबसे बड़ी जादूगरनी,
करती है हम पर जादू टोना।

7 टिप्‍पणियां:

संजय भास्‍कर ने कहा…

विजय जी एक बार फिर अंतर्मन को हिला देने वाली प्रस्तुति बहुत भावुक कर गई.

Minakshi Pant ने कहा…

bahut sundar rachan

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

प्रकृति की सुंदर छटा का मनमोहक चित्रण..... सुंदर रचना

Kunwar Kusumesh ने कहा…

प्रभावी सुन्दर रचना.वाह.

Vaanbhatt ने कहा…

प्रकृति के सारे रूप...बड़ी खूबसूरती से पिरोये हैं...आपने...

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सुन्दर प्राकृतिक चित्रण ... रोशनी का प्रतिनिधि बहुत अच्छी लगी ..

Amrita Tanmay ने कहा…

बेहद सुन्दर ....उद्वेलित कर गया.गजब