गुरुवार, 16 दिसंबर 2010

तुम हो तुम्हारा ख्याल है.....

पत्तियों की सांस उखड़ी है...फूल गौहर लुटाये बैठे हैं ...हम ने माना की चांदनी रात को आज हम अपनी आँखों में सजाये बैठे हैं...वो हमें नींद के गाँव ले जाएगा...हमारे कानों में मिसरी घोलेगा ...जब रात चादर में करवटें लेगा...एक ख्वाब धीरे से अपना वरक खोलेगा...
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रात भर मैं वहीँ था...शाकुंतल नगर के आस पास....मृग छौनो के पीछे भागती शकुंतला और उसे निर्निमेष देखता मैं दुष्यंत....वही पहाड़ों की श्रेणी के बीच बनी पूजा स्थली और नमन करते तुम और मैं...साथ साथ....सब कुछ भर गया मुझे सुखानुभूति से....फिर घंटों हम एक दूसरे की आँख में डूबे रहे....तलाशते रहे अपनी निजता को...मेरे काँधे पे तुम्हारा सर....तुम्हें घेरी हुयी मेरी भुजाएं...जैसे किसी वृक्ष को घेरी अमरबेल की लत्तर...अभी भी मुझको तुम्हारे घने गेसुओं की महक भिगोये हुए है....अभी भी तुम्हारी पलकों पे मेरी याद के फूल जुगनुओं से जल बुझ रहे....अभी भी हमारी सांसें एक दूसरे को जी रही.....तुम हो , तुम्हारा ख्याल है और चाँद रात है...मुझे मिली तुम्हारे प्यार की ये अनुपम खैरात है।
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हे सुगंधे!मैं गंधमादन वन के विशाल तरुवर की विटप छांह में तुम्हारा कब से इंतज़ार कर रहा....हवाएं शूल की तरह आ के मुझे चुभ रही...मन आशंकाओं से ग्रस्त हो रहा....हयबदन और दुष्टबुद्धि राक्षसों ने तुम्हे अपहृत तो नहीं कर लिया? मैं अपने तुरंग पे चढ़ दौर के तुम्हारे पास पहुचना चाहता हूँ....पर हाय री किस्मत....तुम शार्दूल वन के वतानिकुलित कक्ष में कैद और तुम तक पहुचने के सारे मार्ग अवरुद्ध कर दिए गए......तुम हो, तुम्हारा ख्याल है और उदास सी धूप है....तुम्हारी चिंता में व्यग्र मन बना अंध कूप है.
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कतरा कतरा रात गल रही,
बूँदें बूँदें बरसे ओस ,
छिटक छिटक कर बरसे चांदनी,
शीतल मलय करती मदहोश।
याद तुम्हारी आती पल पल,
दिल में होती समुद्र सी हलचल,
तुम हो तो मन मृग सा चंचल,
बिन तुम सब हो जाता खामोश।
नयन तुम्हारे मतवाले से,
कर जाते मुझ पर जादू सा,
बाहें तेरी फूल की डाली,
भर लेती मुझको अपने आगोश।
-नीहार

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