रविवार, 26 सितंबर 2010

तुम


तुम -
और तुम्हारा होना ......
एक एहसास की सिहरन,
एक मीठा सा ताना बाना,
एक ख्वाब जो आँखों की झील में -
खिलता हुआ एक नील कमल,
बर्फ की सफ़ेद पहाड़ों पे ,
नाचती सूरज की किरणे।
तुम्हारा होना......
दिल के कोने में धड़कता हुआ एक और दिल,
चाँद से चेहरे को ख़ूबसूरत बनता एक काला सा तिल,
समंदर के उफान को बंधता हुआ एक साहिल,
बादलों के परों पर धुनी हुयी ख्वाहिश ,और -
फूलों की क्यारियों में उड़ती हुयी तितलियाँ।
तुम्हारा होना.....
खरगोश के फरों सी मुलायम मुलायम एहसास,
चन्दन के जंगलों से चुराया हुआ श्वास,
खुद पे खुद का खुद से किया हुआ विश्वास,
अपने को अपने में अपनी तरह से पाने का प्रयास।
तुम्हारा होना....
सुबह से शाम तक फैला हुआ उजियारा,
रात में बिखरी हुयी चांदनी का नीरव विस्तार,
सितारों की झिलमिलाती रौशनी -
और खिलखिलाती वो हवा,
जो जीवन की है बेहद खूबसूरत सी दवा।
तुम्हारा होना........
मेरे होने का खूबसूरत सा एहसास,
मेरे वजूद का एक लम्स ,
मुझमे सिमटा हुआ मेरा ही खुद।
- नीहार