रविवार, 29 अगस्त 2010

मुझको जला के खुशबु की वो बारिश सा कर गया

मुझको जला के खुशबु की वो बारिश सा कर गया,
शाख से टूटे हुए पत्तों सा वो मुझपे बिखर गया।
वो हजारों हाथ से बस मांगता है दुआ मेरे लिए ,
नंगे पाँव तपती धूप में मंदिर वो चल कर गया।
हर तरफ है घुप अँधेरा और तीरगी बियाबान सी,
उसने जुगनू को पकड़ कर रौशनी को घर किया।
है आग का दरिया मेरे भीतर और बाहर हर तरफ ,
यह जान कर ही उसने तो खुद को है समंदर किया।
बस गया है एक मूरत सा मेरे दिल में वो मेरे खुदा,
मेरी रूह को छूकर उसने मेरे जिस्म को मंदिर किया।
- नीहार

4 टिप्‍पणियां:

vandan gupta ने कहा…

आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति के प्रति मेरे भावों का समन्वय
कल (30/8/2010) के चर्चा मंच पर देखियेगा
और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com

mai... ratnakar ने कहा…

है आग का दरिया मेरे भीतर और बाहर हर तरफ ,
यह जान कर ही उसने तो खुद को है समंदर किया।

wallah!!!!! kya khoob likha hai, bakee panktiyan bhee kamal kee hain
badhai

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत खूबसूरत रचना .

ZEAL ने कहा…

beautiful creation !