सोमवार, 22 फ़रवरी 2010

तुम्हारी ही खातिर

उनको हम अपने दिल में छुपाये बैठे हैं,सारी दुनिया से जैसे उनको चुराए बैठे हैं।

खुदा का नूर टपकता है उनके चेहरे से,इसलिए उनको तो हम खुदा बनाये बैठे हैं।

उनकी रंगत जैसे सुबह की धूप खिली, हम खुद को उस रंग से नहलाये बैठे हैं।

वो आईना है सब कुछ बता देता है मुझे,हर घडी खुद को वो आईना दिखाए बैठे हैं।

उनकी हंसी जैसे मचलता पहाड़ी झरना कोई,उसकी मधुर गूँज हम खुद को सुनाये बैठे हैं।

उनके सिवा हमको अब कोई नज़र आता नहीं,हमारे इर्द गिर्द सिर्फ वो ही वो तो छाये हैं।

-नीहार

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वो साया बन मेरे साथ साथ चल रहा है,देखो वो अपने घर से निकल रहा है।

बहुत मोहब्बत करता है मुझसे, शायद इसलिए वो रोज़ एक सूरज निगल रहा है।

मेरी अनबुझी प्यास बुझाने की खातिर ,देखो वो खुद हिम सा पिघल रहा है।

वो दरिया है शोखी उसकी आदत है , मुझे देखने की खातिर वो कैसे मचल रहा है।

उसकी चाहत खुदा की इबादत है,और खुद की इबादत में वो खुद ही खलल रहा है।

उसके गिरने से मेरी साँसे टूट जाती हैं, मेरी ही खातिर वो हर पल संभल रहा है।

उसको छूने से महक उठती हैं मेरी साँसे,मेरे सीने में वो एक दिल सा पल रहा है।

वो मेरा नसीब है कई जन्मो का, मेरे साथ साथ वो कदम दर कदम चल रहा है।

मैं उसके दिल में रहता हूँ धड़कन की तरह,वो मेरी आँख में रौशनी सा पल रहा है।

-नीहार

2 टिप्‍पणियां:

निर्मला कपिला ने कहा…

दोनो रचनायें बहुत अच्छी लगी
उनको हम अपने दिल में छुपाये बैठे हैं,सारी दुनिया से जैसे उनको चुराए बैठे हैं।

खुदा का नूर टपकता है उनके चेहरे से,इसलिए उनको तो हम खुदा बनाये बैठे हैं।
वाह क्या बात है शुभकामनायें

कविता रावत ने कहा…

उनकी रंगत जैसे सुबह की धूप खिली, हम खुद को उस रंग से नहलाये बैठे हैं।
वो आईना है सब कुछ बता देता है मुझे,हर घडी खुद को वो आईना दिखाए बैठे हैं।
aur
खुदा का नूर टपकता है उनके चेहरे से,इसलिए उनको तो हम खुदा बनाये बैठे हैं।
Bahut achhi lagi aapki gajal.
Bahut badhai