रविवार, 11 अप्रैल 2010

तुम्हारे लिए

तेरी आँखों से जो देखूं दुनिया मुझको रंग रंगीली लागे,
रात चाँद बन उतरे अंखियन ,सूरज पलकन पे है जागे।
तेरे अलकों में बंध कर हम , खोज रहे हैं खुद को कब से,
तेरे स्नेह में पिरो गए हम , जैसे पिरोई हो सूई में धागे।
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एक गुडिया मुझसे है कहती , क्यूँ इतने अच्छे हो तुम,
मैं कहता मैं अच्छा हूँ क्यूंकि, तुम मुझमे हो गयी हो गुम।
तुम सर्दी की धूप सुनहरी , तुम तापस की शीतल छांह ,
मृगछौनो सी चंचल चपला और खरहों सी निर्मल हो तुम।
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ज़िन्दगी मेरी कुछ इस तरह गुज़र जाए,
की मैं गीत लिखता रहूँ और वो गुनगुनाये।
जहाँ जहाँ भी पड़े उनके इस पाँव धरती पर ,
फूल ही फूल उस जगह पे जैसे खिल जाए।
बिन पिए ही हरदम नशे में रहते हैं हम यारब ,
उनके बदन की खुशबु हर सू बिखर बिखर जाए।
उनकी मुस्कराहट जैसे बच्चे की हो मासुमिअत,
उनका क्रंदन जैसे आकाश को भी रुला रुला जाए।
उनकी जुल्फों में छिप जाती है सावन की बदलियाँ ,
उनके होठों से गुलाब अपनी रंगत चुरा चुरा लाये।
उनकी आवाज़ जैसे बज रही हो मंदिर की घंटियाँ,
कोयल भी उनके सुर में हर सुबह है सुर मिलाये।
मैं सूरज बन कर जब भी उनपे छाता हूँ ऐ दोस्त ,
वो चाँद बन कर मेरे घर आँगन निखर निखर जाए।
-नीहार

1 टिप्पणी:

Udan Tashtari ने कहा…

तुम सर्दी की धूप सुनहरी , तुम तापस की शीतल छांह ,
मृगछौनो सी चंचल चपला और खरहों सी निर्मल हो तुम।

-बहुत सुन्दर!