(महादेवी वर्मा से क्षमा याचना समेत....पहली पंक्ति उनकी है...तो सारा क्रेडिट भी उन्ही का)
जो तुम आ जाते एक बार.....
मन हो जाता सागर अथाह,
हो जाती आसान मेरी ये राह,
झंकृत हो जाता मन का सितार ।
जो तुम आ जाते एक बार.....
चांदनी सित होती हरेक रात,
दिल लाता खुशबू की परात,
जीवन में हर पल होती बहार।
जो तुम आ जाते एक बार.....
खिलता हर तरफ शत दल कमल,
हिम खंड भी फिर जाता है पिघल ,
प्रकृति करती फिर नया श्रृंगार।
जो तुम आ जाते एक बार....
मन हो जाता फिर यमुना का तीर,
पावन हो जाता मेरा अधम शारीर,
मेरी बाहें हो जाती कदम्ब की डार।
जो तुम आ जाते एक बार....
- नीहार
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बारिश में घूमोगे तो फिर धूप सरीखे खिल जाओगे,
फूलों की बस्ती में तुम खुशबु सा घुल मिल जाओगे।
जब रात कटेगी तन्हा तन्हा और मेरी याद सताएगी,
हर करवट तुम मुझको अपनी आँख से बहता पाओगे।
चाँद रात की तरह भटकती खुशबु की दरिया सी तुम,
मुझसे होकर गुजरोगे तो खुद को तुम नहाया पाओगे।
मैं तेरी जुल्फों में कैद हुआ हूँ जाने कितने जन्मों से,
तुम भी जानम खुद को मेरी आँखों में बंद पाओगे।
- नीहार
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