तुमने कभी आँखों में नाचते हुए मोरे देखें हैं....नहीं न...देखना चाहोगी?आ जाओ...आ के मेरी आँखों के जंगल में झाँको....उफनते हुए दर्द के बादलों के झमाझम बरस जाते ही,मेरी आँखों में तुम्हारी यादों के मोर अपने पंख पसारे नाचने लगते हैं....
तुम हो, तुम्हारा ख्याल है और चाँद रात है...भींगा मन है और आँखों से होती बरसात है।
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खिड़की से बहार चाँद ज़र्द सा है...मनो किसी ने सूरज को पीला चादर उढ़ा दिया हो...तारे जुगनू बन जल बुझ रहे.....दरख्तों पे बर्फ धुनी रुई सी टंगी है....पत्ते सारे के सारे सिहर कर अपने आप में दुबके जा रहे....झील में तैरता रक्त कमल चन्द्र किरणों से अभिसार कर रहा...मेरे भीतर एक सूनापन घर कर जाता है...मुझे उस रक्त कमल में अपनी प्रियतमा के तप्त अधरों का प्रतिबिम्ब नज़र आता है....मैं बगल में रक्खे तकिये को सीने से लगा लेता हूँ....तुम मुझमे उतर जाती हो....
तुम हो, तुम्हारा ख्याल है और चाँद रात है....कमरे का एकांत है और यादों की बारात है....
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मैं जानता हूँ मेरे लिए मुश्किल होगा तुम्हारे संवाद के बिना जीना...तुम्हारी आवाज़ न सुनू तो लगे जैसे जिंदगी जिया ही नहीं....तुम्हारी आँखों में जो न झाँकू तो समंदर भी सहरा सा लगे है...तुम्हारे बिना न तो कोयल गाती....न ही फूल खिलते हैं....न सागर ठाठें मारता है....और न ही हवाएं बहती हैं.....तुम्हारे बिना मेरी सांसें चलती नहीं बस एक बुझे हुए दिए की लौ की तरह थरथराती है......तुम्हारे बिना मेरी आवाज़ खामोश सी रहती है...दिन जलता हुआ अलाव और रात सर्द बर्फ सी......सूरज पिघल कर टपक जाता और चाँद जम जाता है....तुम नहीं तो जिंदगी थम सी जाती है....पर तुम्हारा ख्याल है की मुझे जिंदा रखता है....तुम्हारी बातों की खुशबु मुझे महकाती है...मैं इस उम्मीद में की तुम वापिस आओगी जिंदा रहूँगा......
तुम हो, तुम्हारा ख्याल है और चाँद रात है...तुम्हारी यादों के जंगल में मेरी जिंदगी से मुलाकात है...
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आँखें बंद कर लेता हूँ और तुमको छू लेता हूँ....मेरे भीतर एक ओस की बूँद मेरी प्यास को बुझाती सी बिखर जाती है....मेरी आँखें धुन्धलाई सी हैं शायद...तुम्हारी याद पलकों पे ठहर से गए हैं आंसुओं की तरह...ज़ज्ब कर लूँगा इन्हें मैं अपने भीतर.....तुम छत पे चले आना और माहताब सा खिल जाना.....मैं चाँद को आईना दिखाना चाहता हूँ। तुम जब पास होते हो तो शब् के सन्नाटे झरनों सा कल कल निनाद करने लगते हैं...सितारे कृष्ण की गोपियों सी रास रचाते और चन्द्र किरण अमृत घाट से रसवंती हो बह जाती. मैं तृप्त हो जाता उस रसवंती को पी और तुम मेरे कानो में गाती और मैं सो जाता...
तुम हो, तुम्हारा ख्याल है और खिली खिली सी धूप है...मेरी जागती आँखों में बस तुम्हारा ही रूप है...
तुम हो, तुम्हारा ख्याल है और चाँद रात है...भींगा मन है और आँखों से होती बरसात है।
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खिड़की से बहार चाँद ज़र्द सा है...मनो किसी ने सूरज को पीला चादर उढ़ा दिया हो...तारे जुगनू बन जल बुझ रहे.....दरख्तों पे बर्फ धुनी रुई सी टंगी है....पत्ते सारे के सारे सिहर कर अपने आप में दुबके जा रहे....झील में तैरता रक्त कमल चन्द्र किरणों से अभिसार कर रहा...मेरे भीतर एक सूनापन घर कर जाता है...मुझे उस रक्त कमल में अपनी प्रियतमा के तप्त अधरों का प्रतिबिम्ब नज़र आता है....मैं बगल में रक्खे तकिये को सीने से लगा लेता हूँ....तुम मुझमे उतर जाती हो....
तुम हो, तुम्हारा ख्याल है और चाँद रात है....कमरे का एकांत है और यादों की बारात है....
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मैं जानता हूँ मेरे लिए मुश्किल होगा तुम्हारे संवाद के बिना जीना...तुम्हारी आवाज़ न सुनू तो लगे जैसे जिंदगी जिया ही नहीं....तुम्हारी आँखों में जो न झाँकू तो समंदर भी सहरा सा लगे है...तुम्हारे बिना न तो कोयल गाती....न ही फूल खिलते हैं....न सागर ठाठें मारता है....और न ही हवाएं बहती हैं.....तुम्हारे बिना मेरी सांसें चलती नहीं बस एक बुझे हुए दिए की लौ की तरह थरथराती है......तुम्हारे बिना मेरी आवाज़ खामोश सी रहती है...दिन जलता हुआ अलाव और रात सर्द बर्फ सी......सूरज पिघल कर टपक जाता और चाँद जम जाता है....तुम नहीं तो जिंदगी थम सी जाती है....पर तुम्हारा ख्याल है की मुझे जिंदा रखता है....तुम्हारी बातों की खुशबु मुझे महकाती है...मैं इस उम्मीद में की तुम वापिस आओगी जिंदा रहूँगा......
तुम हो, तुम्हारा ख्याल है और चाँद रात है...तुम्हारी यादों के जंगल में मेरी जिंदगी से मुलाकात है...
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आँखें बंद कर लेता हूँ और तुमको छू लेता हूँ....मेरे भीतर एक ओस की बूँद मेरी प्यास को बुझाती सी बिखर जाती है....मेरी आँखें धुन्धलाई सी हैं शायद...तुम्हारी याद पलकों पे ठहर से गए हैं आंसुओं की तरह...ज़ज्ब कर लूँगा इन्हें मैं अपने भीतर.....तुम छत पे चले आना और माहताब सा खिल जाना.....मैं चाँद को आईना दिखाना चाहता हूँ। तुम जब पास होते हो तो शब् के सन्नाटे झरनों सा कल कल निनाद करने लगते हैं...सितारे कृष्ण की गोपियों सी रास रचाते और चन्द्र किरण अमृत घाट से रसवंती हो बह जाती. मैं तृप्त हो जाता उस रसवंती को पी और तुम मेरे कानो में गाती और मैं सो जाता...
तुम हो, तुम्हारा ख्याल है और खिली खिली सी धूप है...मेरी जागती आँखों में बस तुम्हारा ही रूप है...
-नीहार
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