टपका जो फर्श पर ,
वो मोती लुटाई आँखों ने....
गूंजी जो सदा वो,
धडकनों में तुम्हारी चाप है ....
लिया जो सांस तो,
खुशबु तुम्हारी जुल्फों की...
महका मेरा जीवन,
क्यूंकि तू मेरे पास है...
तुम ही बताओ मैं कहाँ जाऊं तुम्हे छोड़कर...
खुशियों पे मेरा भी,
कुछ हक है....
जी उठता हूँ मैं तुमसे खुद को जोड़कर...
-नीहार
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वो मुझसे मिल कर घर गया होगा,
और फिर बिस्तर पे गिर गया होगा।
दिल उसका कब से भरा भरा होगा,
उसने रो कर तकिया भिगोया होगा।
ये मुलाकात आखरी मुलाकात हो ,
यह सोच कर वो चुप हो गया होगा ।
वो जानता है की उसके बिन शायद,
ये शख्स बिलकुल ही मर गया होगा।
देखता रहता है रात दिन उसकी तस्वीर,
उसकी जुल्फों में बादल सा हो गया होगा।
उसके होठों पे रख के उँगलियाँ अपनी,
वो खामोशियों में उसको सुन रहा होगा।
उसकी आदत हो चुकी है उसे अब हर पल,
आवारा सा हर जगह उसे ढूंढ रहा होगा ।
हर एक आहट पे अपने दरवाज़े पे आके ,
शब के सन्नाटों में उसको तलाशता होगा।
वो आएगा ,ज़रूर आएगा फिर लौट कर ,
उसने मन ही मन दिल से ये कहा होगा ।
आँखें उफनती सागर सी हैं उसकी और,
उसमे घुल कर वो काजल सा बह गया होगा,
थरथराते लब से उसका नाम लेकर फिर वो ,
खुद ही उसकी प्रतिध्वनि वो सुन रहा होगा ।
वो जानता है की उसके बिन जी नहीं पायेगा,
जीने के वास्ते यादों के फूल वो चुन रहा होगा।
वो शख्श तेरा दीवाना है अपने ही किस्म का ,
अपनी दीवानगी का किस्सा वो बुन रहा होगा।
-नीहार
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गुलों का रंग निखर गया होगा,
वो खुशबु बन कर बिखर गया होगा।
मैं ढूंढ रहा था उसे ना जाने कब से ,
मुझे ढूंढता वो इधर उधर गया होगा।
फूल ही फूल खिले होंगे हर उस राह पे,
वो मुस्कुराता हुआ जिधर गया होगा।
वो बिगड़ा हुआ दिलफेंक आवारा सा ,
उसकी सोहबत में वो सुधर गया होगा।
आज की रात बर्फ ही बर्फ है जमी हुयी ,
आज वो पिघल कर निखर गया होगा।
वो नीहार है रात भर चाँद से ढलकता है,
सुबह फूलों पे टूट वो बिखर गया होगा।
-नीहार
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