मंगलवार, 27 अगस्त 2013

हर किसी का पाँव यहाँ कीचड़ में है पगा .......

जुगनु सा जल बुझा और तू तारे सा टिमटिमा,
सूरज से चुरा कर रौशनी तू चाँद सा जगमगा ।
कोशिश हो कि हमको कभी अंधेरे न लील लें,
हाथों में ले  मशाल तू और उसे दूर तक भगा ।
क्यूँ खोजता है तू यहाँ हर चेहरे में अपना अक्स,
ये यंत्र युग का शहर है यहाँ होता न कोई सगा ।
आजकल के बच्चों की फितरत ही है कुछ ऐसी,
दिन को सोते घोड़े बेच और फिर करते रतजगा ।
मैं ढूँढ़ रहा हूँ ऐसा शख्स पैर जिसके मैं छूँ सकूँ,
पर हर किसी का पाँव यहाँ कीचड़ में है पगा ।
बस दो ही तरह के राजनीतिज्ञ मिलते यहाँ हमें ,
कोई लूटता है खुलकर ,किसी ने चुपके से ठगा ।
मैं कभी भी किसी बात की परवाह नहीं करता ,
मैं वही सब करता ,जो सदा मुझे ठीक है लगा ।
संघर्ष रत हरएक युवक को है ये मेरा आशीर्वाद ,
काँटों में रह के खिल और तू हीरे सा जगमगा ।
- नीहार ( चंडीगढ़,अगस्त २७,२०१३ )

1 टिप्पणी:

ओंकारनाथ मिश्र ने कहा…

बिलकुल सत्य बयाँ किया है.