शनिवार, 2 फ़रवरी 2013

सोने सी धूप और आँख का वज़ू करना....

तेरे आरिज़ पे बिखरा जो -
तबस्सुम का गुमा देता है....
मेरी आँख का आँसू है,
जो तूने पीने की कोशिश की है।
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आह तेरा जागना और -
यूं मुझ से लिपट जाना .....
ये ख्वाब तो फिर ख्वाब में,
जीता रहूँ तमाम उम्र ।
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 तेरे रुख से जो ज़ुल्फों को -
हटा दिया मैंने.......
धूप सोना हो के मुझसे,
लिपट गयी है आज।
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तुम सोचते होगे कि -
मैं तुम्हें इतना सोचता क्यूँ हूँ....
जो न सोचा करूँ तुमको,
तो फिर जीने का मक़सद नहीं मेरे पास।
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आँखें बंद किए मैं -
बस तुझे देख रहा हूँ.....
पलकें इस तरह मेरी,
वज़ू करती हैं आजकल।

- नीहार (चंडीगढ़,जनवरी 2013 की कोहसार मे लिपटी सुबह )
 

8 टिप्‍पणियां:

Amrita Tanmay ने कहा…

कुछ कहती हुई..कुछ न कहती हुई...अहसास..

विभूति" ने कहा…

सुन्दर भावो को रचना में सजाया है आपने.....

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बेहद खूबसूरत क्षणिकाएं.....
एहसासों से भरी.....

अनु

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत सुंदर .... हर रचना बेहतरीन

Vijuy Ronjan ने कहा…

एहसास की खामोशी की सुनकर जो प्रतिक्रियाएँ आती हैं , वे बेहद स्वाभाविक लगती हैं अमृता....ध्नयवाद स्वाभाविक प्रतिकृया के लिए।

Vijuy Ronjan ने कहा…

सुषमा जी...आप की सराहना मुझे काफी मिलती रहती है...आप का प्रोत्साहन और अच्छा लिखने को प्रेरित करता है....धन्यवाद।

Vijuy Ronjan ने कहा…

अनु...धन्यवाद सराहना के लिए....क्षण भर के जीवन मे क्षण भर की खुशियाँ छन छन कर बटोरने की कोशिश कर रहा....

Vijuy Ronjan ने कहा…

संगीता जी ...आप की सराहना सर आँखों पर....आपका स्नेह मिलता है तो लिखने की हिम्मत द्विगुणित हो जाती है ...आभार...