शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2013

अपनी आँखों से पलकों की नक़ाब उठा दो....


अपनी आँखों से पलकों की नक़ाब उठा दो,
धूप की चाहत है, तुम मेरी सुबह तो ला दो।
मैं चुन रहा था रात भर तेरे लब पे खिले गुंचे,
दिन के उजालों मे भी ज़रा लब तो हिला दो।
मुझको सुकून देती है तेरी ज़ुल्फों की घनी छांह,
है कड़ी धूप बहुत तुम जरा जुल्फें तो फैला दो।
अब एक लम्हा भी नहीं रहा जाता है तेरे बिन ,
आओ और मेरी साँसो के मुरझाए फूल खिला दो।
बरसों का हूँ प्यासा मैं भटका हूँ गर्म रेत सा ,
अपने लब से तुम मुझे आज अमृत तो पिला दो।
टूट जाती है मेरी सांसें अक्सर यूं रह रह कर ,
 
टूटती  साँसों में तुम अपनी सांसें तो मिला दो ।

-    नीहार

6 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत खूबसूरत रचना

Ranjana verma ने कहा…

बेहतरीन रचना.....

Amrita Tanmay ने कहा…

शब्दों का खूबसूरत जाल..

Vijuy Ronjan ने कहा…

संगीता जी ,शुक्रिया आपका...

Vijuy Ronjan ने कहा…

धन्यवाद अमृता।

Vijuy Ronjan ने कहा…

शुक्रिया रंजना जी