आह ये फ़ेनिल सा समुद्र -
कुछ भी नहीं रखता अपने भीतर ।
जो भी वो पाता है....
पहुंचा जाता है तट पर -
उड़ेल देता है निःस्वार्थ हो ,
सब कुछ वो - सीप......मोती....माणिक....मुक्
सिर्फ देना जानता है समुद्र ।
चलो, कुछ पल के लिए -
हम समुद्र हो जाएँ.....
अथाह गहराई लिए,
... कुछ भी न रक्खें अपने भीतर...
बाँट दें सब निःस्वार्थ हो।
जो भी हो पास,
जितना भी हो पास.....सब बाँट दें.....
-नीहार (कोवलम बीच पर बिताए कुछ क्षण,जनवरी 8,2013)
4 टिप्पणियां:
बाँट दें सब निःस्वार्थ हो।
अनुपम भाव ...
धन्यवाद सदा जी...
समुद्र होकर ही महा समुद्र में मिल जाएँ..
धन्यवाद अमृता....
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