तेरे आरिज़ पे बिखरा जो -
तबस्सुम का गुमा देता है....
मेरी आँख का आँसू है,
जो तूने पीने की कोशिश की है।
************************
आह तेरा जागना और -
यूं मुझ से लिपट जाना .....
ये ख्वाब तो फिर ख्वाब में,
जीता रहूँ तमाम उम्र ।
******************** तेरे रुख से जो ज़ुल्फों को -
हटा दिया मैंने.......
धूप सोना हो के मुझसे,
लिपट गयी है आज।
******************
तुम सोचते होगे कि -
मैं तुम्हें इतना सोचता क्यूँ हूँ....
जो न सोचा करूँ तुमको,
तो फिर जीने का मक़सद नहीं मेरे पास।
****************************** ***
आँखें बंद किए मैं -
बस तुझे देख रहा हूँ.....
पलकें इस तरह मेरी,
वज़ू करती हैं आजकल।
- नीहार (चंडीगढ़,जनवरी 2013 की कोहसार मे लिपटी सुबह )
तबस्सुम का गुमा देता है....
मेरी आँख का आँसू है,
जो तूने पीने की कोशिश की है।
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आह तेरा जागना और -
यूं मुझ से लिपट जाना .....
ये ख्वाब तो फिर ख्वाब में,
जीता रहूँ तमाम उम्र ।
******************** तेरे रुख से जो ज़ुल्फों को -
हटा दिया मैंने.......
धूप सोना हो के मुझसे,
लिपट गयी है आज।
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तुम सोचते होगे कि -
मैं तुम्हें इतना सोचता क्यूँ हूँ....
जो न सोचा करूँ तुमको,
तो फिर जीने का मक़सद नहीं मेरे पास।
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आँखें बंद किए मैं -
बस तुझे देख रहा हूँ.....
पलकें इस तरह मेरी,
वज़ू करती हैं आजकल।
- नीहार (चंडीगढ़,जनवरी 2013 की कोहसार मे लिपटी सुबह )
8 टिप्पणियां:
कुछ कहती हुई..कुछ न कहती हुई...अहसास..
सुन्दर भावो को रचना में सजाया है आपने.....
बेहद खूबसूरत क्षणिकाएं.....
एहसासों से भरी.....
अनु
बहुत सुंदर .... हर रचना बेहतरीन
एहसास की खामोशी की सुनकर जो प्रतिक्रियाएँ आती हैं , वे बेहद स्वाभाविक लगती हैं अमृता....ध्नयवाद स्वाभाविक प्रतिकृया के लिए।
सुषमा जी...आप की सराहना मुझे काफी मिलती रहती है...आप का प्रोत्साहन और अच्छा लिखने को प्रेरित करता है....धन्यवाद।
अनु...धन्यवाद सराहना के लिए....क्षण भर के जीवन मे क्षण भर की खुशियाँ छन छन कर बटोरने की कोशिश कर रहा....
संगीता जी ...आप की सराहना सर आँखों पर....आपका स्नेह मिलता है तो लिखने की हिम्मत द्विगुणित हो जाती है ...आभार...
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