शब के सन्नाटे मुझको हैं पसंद,
मैं खुद के भीतर हो जाता हूँ बंद।
जलता है विचारों का दीप हरपल,
मन के भीतर चलता है एक द्वन्द।
मन आवारा हो भटकता है दर बदर ,
उसको बाँध लें और बुन लें नयी छंद।
पहनता है राख से बुने हुए कपडे वो,
उसके लिए हर समस्या है ज्वलंत।
सपने ओढ कर सोने की आदत है उसे,
देखता है रात दिन सपने वो मनगढ़ंत।
न सागर है, न ही अभ्र , न ही आब कहीं,
अपने भीतर वो ढूंढता रहता है मकरंद।
तिश्नगी उसकी बढती गयी बढती गयी,
चिंगारियां खाकर वो रहता मस्त मलंग।
-नीहार
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हम उसकी आँख में उतर के देखते हैं,
खुद को फिर बन संवर के देखते हैं।
सुना है जिसे छू ले वो फिर से जी जाए,
चलो एक दफा हम भी मर के देखते हैं।
वो चांदनी बन के रात हमारे घर उतरे,
हम धूप सा उसके घर पसर के देखते हैं ।
दुनिया से लड़ता है वो इंसानियत के लिए ,
चलो हम उसके लिए सबसे लड़ के देखते हैं।
वो बसा देता है हर घर उजड़ा जो तूफ़ान में,
चलो बसने के लिए हम भी उजड़ के देखते हैं।
-नीहार
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तुम जो आओगे तो मैं जी जाऊँगा,
फिर से प्यार के गीत गुनगुनाऊंगा।
तन्हा हूँ कहीं भी मैं आता जाता नहीं,
तू पुकारे तो मैं दौड़ा चला आऊंगा।
तेरी पलकों पे आंसू मोती सा लरज़ रहा,
मैं हंस बन तेरे ये मोती चुग जाऊँगा।
कई दिनों से मैंने खुद को भी देखा नहीं,
तू जो आ जाये तो मैं खुद को देख पाउँगा।
कुछ गीत लिखे कुछ धुन सजाये तेरे लिए,
कुछ मौसम से रंग ले तस्वीर मैं बनाऊंगा।
तू जिंदगी है मेरी और तुझसे ही मैं रोशन हूँ ,
जो तू नहीं तो मैं फिर अँधेरे से लिपट जाऊँगा।
-नीहार
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5 टिप्पणियां:
एक साथ इतनी नज्में .....?
आपकी हैं सारी ....?
सुना है जिसे छू ले वो फिर से जी जाए,
चलो एक दफा हम भी मर के देखते हैं।
क्या बात है .....
पर कोशिश मत कीजियेगा ......
sabhi rachna badhiya lagi
शब के सन्नाटे मुझको हैं पसंद,
मैं खुद के भीतर हो जाता हूँ बंद।
जलता है विचारों का दीप हरपल,
मन के भीतर चलता है एक द्वन्द।
मन आवारा हो भटकता है दर बदर ,
उसको बाँध लें और बुन लें नयी छंद।
waah bahut khoob
अच्छा लिखते हैं आप ..अच्छी लगी आपकी अभिव्यक्ति .. आभार
शब के सन्नाटे मुझको हैं पसंद,
मैं खुद के भीतर हो जाता हूँ बंद।
जलता है विचारों का दीप हरपल,
मन के भीतर चलता है एक द्वन्द।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति है... तीनों ही रचनाएँ बेमिसाल हैं....
आपकी प्रस्तुति प्रशंसनीय है.बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति.aabhar .
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