आओ
कुछ गीत बुनें ।
रंगों
के मौसम में –
मन
के आकाश पटल पे,
साँसों
को कूची कर,
रंगो
की बरसात करें....
आओ
कुछ गीत बुनें ।
मन
को कर निर्झर सा,
तन
को कर पाषाण फिर,
व्यथा
को कर संगीत सा,
धड़कन
की ताल सुनें...
आओ
कुछ गीत बुनें ।
बहते
रहे हवाओं सा ,
चंदन
की ख़ुशबू लिये,
पर्वत
दर पर्वत भटक,
सूर्य-किरण
मुक्ता चुनें....
आओ
कुछ गीत बुनें ।
-
नीहार
3 टिप्पणियां:
बेहतरीन अभिवयक्ति.....
इस गीत की धुन बेहद आकर्षक है..
हूँ अमृता....यूं ही गुनगुनाते हुये लिखी गयी अभिव्यक्तियाँ अक्सर आकर्षक हो जाती हैं....धन्यवाद...
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