सोमवार, 26 नवंबर 2012

तुम हो, तुम्हारा खयाल है....

तुम्हारी याद ने सुबह सुबह -
मुझे नहला दिया सूरज की गुलाबी रोशनी में.....
मेरी आँखें खुल गईं,
और,
उनमे तुम्हें देखने की ललक जाग गई....
मैंने अपने चारों तरफ,
पसरे मौन में तुम्हें सुनने की कोशिश की।
तुम , कोयल के गले से निकली-
कूक सी मुझमें उतरती जा रही....
तुम्हारे कोमल पाँव की छाप हर शू,
...

खिला देते हैं शत दल कमल -
और,
मैं उनकी पंखुरियों पे बिखरे अश्रु बूंद को,
अपनी उँगलियों की कोरों पे उठा -
उनसे अपनी आँखें धो लेता हूँ।
सुबह की हवा में लिपटी तुम्हारे गेसूओं की खुशबू -
मेरे मन प्राण को स्पंदित कर जाती है।
आँखें बंद करता हूँ तो तुम सामने होती हो -
और,
खुली आँखें तुम्हें तलाशती हैं बेचैन हो....
ये आँखें न खुलें तो अच्छा है -
तुम हर पल सामने बैठी तो होगी ।
तुम हो, तुम्हारा खयाल है और ये सुबह का फैला उजियारा...
कोयल ने कूका है या तुमने मुझे पुकारा ।
- नीहार

1 टिप्पणी:

विभूति" ने कहा…

बहुत ही खुबसूरत ख्यालो से रची रचना......