गुरुवार, 30 जून 2011

ताज़ी क्षणिकाएं

कुछ नयी क्षणिकाएं
खुदा भी आजकल मुझपर ,
कुछ मेहरबान ज्यादा है –
उसको पता है आजकल मैं,
सिर्फ तेरी ही इबादत करता हूँ।
***************************
सितारे सुलग रहे ,
रात के माथे पे यूं -
तेरे माथे पे जैसे,
पसीने चुहचुहा रहे।
***********************
तेरे माथे से जो पसीने को –
अपने हाथों से पोछा मैंने,
हजारों जुगनू मेरी हथेली पे,
रक्स करने लगे ।
***********************
मेरे पाँव खुद ब खुद-
तेरे दरवाजे तक मुझे ले आते,
आज कल मुझे मंदिर जाने की –
आदत सी हो चली है।
***********************
मैं आजकल अपने चेहरे पे –
कई चेहरे लगा लेता हूँ,
जो जैसा देखना चाहे मुझे –
उसे वैसा ही चेहरा दिखा देता हूँ।
***************************
हंस मोती चुगता है ,
जैसे ही उसने ये सुना –
मेरी हथेली पे अपनी आँख के,
मोती टपका दिये।
********************
वो रात को चुपके से ,
अंधेरा ओढ़ लेता है –
दिन के उजाले उसे,
सूरज बना देते हैं।
****************
रेत पे लिखता है नाम ,
अपनी उँगलियों से वो –
वक़्त पानी का रेला है,
हर नाम मिटा देता है।
***********************
हर सुबह घर से वो ,
निकलता है ये सोचकर –
शायद कभी अपने घर का,
रास्ता वो भूल जाये।
**********************
हर चेहरे मे ढूँढता है,
खुद का चेहरा हर समय –
जब भी घर से निकलता है,
तो आईना पहन लेता है वो।
**********************
बादल को अगर तुम –
ज़ोर से रुलाना चाहो,
सूरज की आग को,
फिर से हवा दो।
************************
अपनी मुट्ठी मे –
गुच्छे भर अमलताश लिए,
सोचती रही रात भर की,
धूप उसकी मुट्ठी मे कैद है।
********************************
थरथराते होंठों से –
वो नाम ले रहा है मेरा,
उसको भी वक़्त ने
बोलना है सिखा दिया।
***************************
उसके चेहरे पर जो –
पल भर को झुका मैं तो,
लोगों ने कहा देखो –
आंशिक चंद्रग्रहण है लग गया।
**************************

14 टिप्‍पणियां:

विभूति" ने कहा…

bhut khubsurat chadikaaye....

ऋचा ने कहा…

bahut achha likha hai aapne...

रश्मि प्रभा... ने कहा…

मेरे पाँव खुद ब खुद-
तेरे दरवाजे तक मुझे ले आते,
आज कल मुझे मंदिर जाने की –
आदत सी हो चली है।
*********************waah

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

तेरे माथे से जो पसीने को –
अपने हाथों से पोछा मैंने,
हजारों जुगनू मेरी हथेली पे,
रक्स करने लगे ।...

मेरे पाँव खुद ब खुद-
तेरे दरवाजे तक मुझे ले आते,
आज कल मुझे मंदिर जाने की –
आदत सी हो चली है।

सारी क्षणिकाएँ ही लाजवाब हैं ..बहुत सुन्दर

Anupama Tripathi ने कहा…

आपकी किसी पोस्ट की चर्चा है कल ..शनिवार(२-०७-११)को नयी-पुराणी हलचल पर ..!!आयें और ..अपने विचारों से अवगत कराएं ...!!

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

क्या बात, बहुत सुंदर

शिखा कौशिक ने कहा…

sabhi shanikayen ati sundar hain .badhai

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

बादल को अगर तुम –
ज़ोर से रुलाना चाहो,
सूरज की आग को,
फिर से हवा दो।

बेहतरीन.

सादर

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ ने कहा…

सारी क्षणिकाएं बहुत सुन्दर...बधाई

shikha varshney ने कहा…

बेहतरीन क्षणिकाएं.
अपनी मुट्ठी मे –
गुच्छे भर अमलताश लिए,
सोचती रही रात भर की,
धूप उसकी मुट्ठी मे कैद है।
***
तेरे माथे से जो पसीने को –
अपने हाथों से पोछा मैंने,
हजारों जुगनू मेरी हथेली पे,
रक्स करने लगे.
ये खास पसंद आईं.

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

”.... वक्त पानी का रेला है
हर नाम मिटा देता है...”

बहुत सुन्दर लेखन....
सभी क्षणिकाएं बेहतरीन....

Udan Tashtari ने कहा…

सुन्दर क्षणिकायें....

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

सभी क्षणिकाएं गज़ब की .....

स्वतः अभिव्यक्त हो रही है हर क्षणिका...

गीता पंडित ने कहा…

मेरे पाँव खुद ब खुद-
तेरे दरवाजे तक मुझे ले आते,
आज कल मुझे मंदिर जाने की –
आदत सी हो चली है।
................... बहुत सुंदर...
आभार ..