झन झन झन बाजे मन का सितार
खन खन खन कंगन करे पुकार
सन सन सन बहता मदिर पवन
हुम्म हुम्म हुम्म बादल भरे हुँकार।
छम छम छम बिजली करती नाच
लह लह लह लहके मौसम की आंच
झर झर झर झरने गाते हैं छंद
कल कल कल बहती नदिया की धार।
झम झम झम बरसे घनघोर घटा
खिल खिल खिल जाए प्रकृति की छटा
कू कू कू कर कोयल छेड़े है मीठी तान
धक् धक् धक् धडके दिल का हरेक तार।
-नीहार
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उठो की मेरे दिल को करार मिले
उठो की तेरी आहट से हैं फूल खिले
उठो की तेरी पलकों से फूटे उजाले की किरण
उठो की फिर गुलशन का कारोबार चले।
उठो की तेरी खुशबु में मैं फिर नहा लूँ
उठो की तेरे गुलाब से लब से रंग चुरा लूँ
उठो की तेरी आवाज़ से मिले कोयल को सुर
उठो की बहती हुयी दरिया को धार मिले।
उठो की चिरियों को मिले मधुर तान
उठो की किसलयों को मिले मुस्कान
उठो की तितलियों को फिर मिले पँख
उठो की मेरे जीवन को फिर श्रृंगार मिले।
उठो की मुझको फिर मेरा प्यार मिले।
-नीहार
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उठो....
पलकें खोलो....
धूप बिखर जाने दो।
उठो...
अन्गराइयाँ लो ....
फूल खिल जाने दो।
उठो ...
सांसें लो....
खुशबु बिखर जाने दो।
उठो...
कुछ तो बोलो....
हवाओं को गुनगुनाने दो।
उठो...
गेसुओं को....
समेट लो और...
चाँद निखर जाने दो।
उठो...
ज़मीन पे...
पाँव रक्खो और...
चिराग जल जाने दो।
उठो...
एक बार फिर...
मुस्कुरा दो...
जिंदगी पा जाने दो।
- नीहार
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बसंत का है आगमन
खिल गया हरेक चमन।
तिग्म्रश्मियों के रंग से
रक्त वर्णी हुआ गगन।
पुष्प गंध बिखेर रहे
भ्रमर पुष्प छेड़ रहे
कोयल की कूक सुनके
पी को याद करे है मन।
यमुना तट पे धेनु लिए
नटखट श्याम घूम रहे
कदम्ब तले राधा खड़ी
भर के उनको अपने नयन।
-नीहार
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1 टिप्पणी:
achchha likhate hain ..
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