तुम हो,तुम्हारा ख्याल है और चाँद रात है...
आकाश की आँखों से टपकते अश्रु बूँद ,
चाँद के ढल जाने के गम में धरती को भिगो रहे......
तारे एक एक कर टूट रहे और समंदर में खुदकशी कर रहे...
आकाश के नंगे सीने पर अब कोई सजावट नहीं....
सूनापन उसे घेरे है।
रात ने पलक झपकते ही करवट लिया ,
और सुबह मचलती हुयी उफक पे रक्स करने को बेताब...
जितने भी सितारे समंदर की गहरायिओं में डूबे थे,
सभी मनो एकाकार हो नए सूरज के रूप में समंदर के गर्भ को चीर कर बाहर आते हैं।
पीले सरसों के फूलों सी सुकोमल धूप ,
अपनी बाहें पसारे मुझे अपने आगोश में लेने को व्याकुल....
हवा मेरे कानो में गुनगुन करती है और मुझे आश्वश्त भी ,
की तुम हो....यहीं कहीं ....मेरे आस पास...
तुम हो, तुम्हारा ख्याल है और भीगे है नयन....
झूमती हवा है,मचलती दरिया है और है शुभ्र नील गगन।
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खामोश सा माहौल और ख्यालों की बजती झांझरी...
आँखों के आगे रक्स करता तुम्हारा पूरा का पूरा बदन...
जैसे तपती रेत पर नाचती धूप की लहर।
अचानक...
जुल्फों के घने साए मुझपर सांझ कर देते...
तुम्हारी आंखें ,
मंदिर के दिए सी दीप्त हो जाती ।
एक खुशबु मुझतक आती हुयी...
तुमने मेरे चेहरे पे अपनी सांसें छोड़ी,
या ये तुम्हारे हाथ में आरती के थाल से उठती कपूर की खुशबु है....
तुम हो, तुम्हारा ख्याल है और चाँद रात है...
खिली चांदनी,मदमाती हवा और मिसरी की डली से तेरी हर बात है।
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अब एक सिर्फ बेआवाज़ सी ख़ामोशी है ,और...
तुम्हारे ख्याल की खुशबू।
कभी खुशबू की आहात सुनी है तुमने...
कुछ इस तरह बजती हैं ये,
मनो शांत झील पे नाचती हुयी चांदनी ।
जैसे सूरज के ढलने पर,
उतर रही हो निशा पाने पंख पसारे...
हौले ....हौले...
या नींद में बोझल पलकें,
सपनो की आहट पे क्षण भर को एक दूजे को चूम लें।
खामोश से लफ्ज़,
जैसे दिल में दौड़ते रुधिर की रवानगी।
तुम हो, तुम्हारा ख्याल है और उतरती शाम है...
तुम्हारी आवाज़ में ,
मंदिर की बजती घंटियाँ हैं या मस्जिद का अज़ान है।
-नीहार
7 टिप्पणियां:
उसके ख़याल में बुनी तीनों नज्में बेहद खूबसूरत
तुम , तुम्हारा ख्याल और चाँद रात
तारे , हवा , पिली सरसों , कपूर की खुशबू से रचे पेज जज़्बात ...
बहुत खूबसूरत एहसास !
कपूर की खुशबू से रचे पेज जज़्बात ...बहुत सुंदर रचना .. बाधाई
tum ho, tumhaara khyaal hai aur chaand raat hai ...sundar prastuti.. aaabhar !
एक खयाल की सोच कर आया था तीन मिले... तीनो मन भावन...
लिखते रहिये
पर अपना हाल उल्टा है
"तुम नहीं, गम नहीं, शराब नहीं
ऐसी तन्हाई का जबाब नहीं"
तीनों कविताएं एक अलग ही भाव-संसार में ले जाती हैं...बहुत ही गहरे भाव !....बधाई !
बहुत उम्दा और शानदार नज़्में ,बधाई
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