शनिवार, 22 जनवरी 2011

किसलय क्यूँ है उदास

किसलय क्यूँ है उदास -

बुझ नहीं रही अनबुझी प्यास....

सागर सागर भटका बादल,

प्यासा है फिर भी आकाश।

पत्तों से टपका एक बूँद -

रात ने ली जब आँखें मूँद....

उम्र फिर बन कर दरिया अनेक,

बहता अबाध पत्थर तराश।

सूरज की आँख ने रोया धूप -

मन का हर गया तिमिर कूप...

जीवन का हर गया सब विषाद,

अग्नि पीकर खिला ज्यूँ पलाश।

चन्दन से लेता है गंध उधार -

फिर लाता बेमौसम बहार...

प्रकृति का निखारता रंग रूप,

सुंगंधित करता फिर अपनी श्वास।

-नीहार

2 टिप्‍पणियां:

संजय भास्‍कर ने कहा…

वाह ! बेहद खूबसूरती से कोमल भावनाओं को संजोया इस प्रस्तुति में आपने ...

संजय भास्‍कर ने कहा…

"माफ़ी"--बहुत दिनों से आपकी पोस्ट न पढ पाने के लिए ...