किसलय क्यूँ है उदास -
बुझ नहीं रही अनबुझी प्यास....
सागर सागर भटका बादल,
प्यासा है फिर भी आकाश।
पत्तों से टपका एक बूँद -
रात ने ली जब आँखें मूँद....
उम्र फिर बन कर दरिया अनेक,
बहता अबाध पत्थर तराश।
सूरज की आँख ने रोया धूप -
मन का हर गया तिमिर कूप...
जीवन का हर गया सब विषाद,
अग्नि पीकर खिला ज्यूँ पलाश।
चन्दन से लेता है गंध उधार -
फिर लाता बेमौसम बहार...
प्रकृति का निखारता रंग रूप,
सुंगंधित करता फिर अपनी श्वास।
-नीहार
2 टिप्पणियां:
वाह ! बेहद खूबसूरती से कोमल भावनाओं को संजोया इस प्रस्तुति में आपने ...
"माफ़ी"--बहुत दिनों से आपकी पोस्ट न पढ पाने के लिए ...
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