मंगलवार, 29 मई 2012

मैं - अजल से गाता रहा ..... तुम – अजल से सुनती रही



मैं पिघल रहा था ,
उसके बदन के ताप से –
और वो रात भर लिपटी रही,
मुझको चन्दन किए हुये।
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मैं –
आकाश हूँ ....  
झुक जाता हूँ,
तुमपे हरदम .....
तुम –
पृथा हो कर ,
 हर वक़्त मुझे –
थामे रहती हो।
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यादें –
समंदर हुयी जाती हैं ,
आँखों  के अंदर......
मैं –
उन्हे पलकों पे,
आने की –
 इजाजत नहीं देता ।
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धूप –
झुलसा गयी ,
भीतर तक मुझे.....
लेकिन –
तेरी खुशबू ए याद ने,
मरहम सा संवारा मुझको......
जब भी –
मुझको सुनाई देती है,
मंदिर में बजती घंटी.....
यूं लगता है –
जैसे की ,
तुमने है पुकारा मुझको ।
************************************
मेरे बदन का ज़र्रा ज़र्रा -
याद करता बस तुम्हें ही....
मैं - अजल से गाता रहा ,
तुम – अजल से सुनती रही ।
हर्फ़ दर हर्फ़ –
हारसिंगार हो झड़ते रहे.....
और पत्ते पत्ते पे –
गजल लिखती गयी।
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हर दिन
तुम मुझमे उतर जाती हो,
धूप सी ...
हर रात –
मैं बस तुममें ही,
बीत जाता हूँ।



 - नीहार









10 टिप्‍पणियां:

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

वाह...............

सुंदर...

बहुत ही खूबसूरत रचनाएँ.....

अनु

Vijuy Ronjan ने कहा…

Thanks Anu.....

विभूति" ने कहा…

हर दिन –
तुम मुझमे उतर जाती हो,
धूप सी ...
हर रात –
मैं बस तुममें ही,
बीत जाता हूँ।अहसासों की कहानी हैं.... भावमय करते शब्‍दों का संगम

Asha Joglekar ने कहा…

जब भी –
मुझको सुनाई देती है,
मंदिर में बजती घंटी.....
यूं लगता है –
जैसे की ,
तुमने है पुकारा मुझको ।

वाह ।

Vijuy Ronjan ने कहा…

Thanks Sushma ji and Asha ji aap ki sarahna ke liye.

Vijuy Ronjan ने कहा…

Thanks Sushma ji and Asha ji aap ki sarahna ke liye.

Amrita Tanmay ने कहा…

जब पुकार आती है तो कोई भला कैसे रुक सकता है....बहुत अच्छी लगी..

Vijuy Ronjan ने कहा…

Amrita aapki tippaniyan maayne rakhti hain.....sarahna ke liye dhanyvaad.

Minakshi Pant ने कहा…

वाह बहुत सुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति | श्रृंगार से लबरेज |

अन्विता ने कहा…

"यादें –
समंदर हुयी जाती हैं ,
आँखों के अंदर......
मैं –
उन्हे पलकों पे,
आने की –
इजाजत नहीं देता । "
kitni khubsurat hain wo yaadein jinke ehsaas ko jinke aansuwo ko khud ke siwa kahi jaane ki ijaajat nahi

Thanks Sir for sharing !