मैं पिघल रहा था ,
उसके बदन के ताप से –
और वो रात भर लिपटी रही,
मुझको चन्दन किए हुये।
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मैं –
आकाश हूँ ....
झुक जाता हूँ,
तुमपे हरदम .....
तुम –
पृथा हो कर ,
हर वक़्त मुझे –
थामे रहती हो।
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यादें –
समंदर हुयी जाती हैं ,
आँखों के
अंदर......
मैं –
उन्हे पलकों पे,
आने की –
इजाजत नहीं देता ।
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धूप –
झुलसा गयी ,
भीतर तक मुझे.....
लेकिन –
तेरी खुशबू ए याद ने,
मरहम सा संवारा मुझको......
जब भी –
मुझको सुनाई देती है,
मंदिर में बजती घंटी.....
यूं लगता है –
जैसे की ,
तुमने है पुकारा मुझको ।
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मेरे बदन का ज़र्रा ज़र्रा -
याद करता बस तुम्हें ही....
मैं - अजल से गाता रहा ,
तुम – अजल से सुनती रही ।
हर्फ़ दर हर्फ़ –
हारसिंगार हो झड़ते रहे.....
और पत्ते पत्ते पे –
गजल लिखती गयी।
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हर दिन –
तुम मुझमे उतर जाती हो,
धूप सी ...
हर रात –
मैं बस तुममें ही,
बीत जाता हूँ।
- नीहार
10 टिप्पणियां:
वाह...............
सुंदर...
बहुत ही खूबसूरत रचनाएँ.....
अनु
Thanks Anu.....
हर दिन –
तुम मुझमे उतर जाती हो,
धूप सी ...
हर रात –
मैं बस तुममें ही,
बीत जाता हूँ।अहसासों की कहानी हैं.... भावमय करते शब्दों का संगम
जब भी –
मुझको सुनाई देती है,
मंदिर में बजती घंटी.....
यूं लगता है –
जैसे की ,
तुमने है पुकारा मुझको ।
वाह ।
Thanks Sushma ji and Asha ji aap ki sarahna ke liye.
Thanks Sushma ji and Asha ji aap ki sarahna ke liye.
जब पुकार आती है तो कोई भला कैसे रुक सकता है....बहुत अच्छी लगी..
Amrita aapki tippaniyan maayne rakhti hain.....sarahna ke liye dhanyvaad.
वाह बहुत सुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति | श्रृंगार से लबरेज |
"यादें –
समंदर हुयी जाती हैं ,
आँखों के अंदर......
मैं –
उन्हे पलकों पे,
आने की –
इजाजत नहीं देता । "
kitni khubsurat hain wo yaadein jinke ehsaas ko jinke aansuwo ko khud ke siwa kahi jaane ki ijaajat nahi
Thanks Sir for sharing !
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