बहुत याद आते हो मुझे -
पलकें बंद करूँ तो,
ख्वाब सा देखूं तुम्हे मैं -
आँख खुलते ही तुम मुझे ,
हर शय में शामिल दिख रही हो....
यह प्यार मेरा प्रसश्त करता ,
आराधना का मार्ग जानम -
चल के जिसपे,
मैं पहुँच जाता हूँ तुम तक....
मेरे थके हारे मन का विश्रामस्थल,
मेरे जन्मों की तपस्या का प्रतिफल है ।
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मैं ख्वाब की रेत बिछाता हूँ,
और नंगे पाँव -
तुम तक भागा आता हूँ....
मेरे बदन से चूते हुए श्वेद कण ,
उस रेत पे रात के जुगनुओं की तरह -
दमक उठते हैं....
तुम उन्हें अन्जुरिओं में उठा,
अपनी आँखों में भर लेती हो -
मैंने तुम्हारी आँखों में,
अपने लिए असीम प्यार देखा है.....
मैं उस प्यार के महासागर में -
यूँ ही डूबा रहना चाहता हूँ....
हाँ ,
मैं जीना चाहता हूँ ......
9 टिप्पणियां:
bahut sundar likhi hei kavita!!!
khwab ki ret bicha kar nange paanv uss par bhagna...bahut khub!!
मैं ख्वाब की रेत बिछाता हूँ,
और नंगे पाँव -
तुम तक भागा आता हूँ....
जीने के लिए काफी है ये ख्वाबों की रेत...
मैं उस प्यार के महासागर में -
यूँ ही डूबा रहना चाहता हूँ....
हाँ ,
मैं जीना चाहता हूँ ...bahut hi sundar chaah
सुंदर अभिव्यक्ति
छलके प्रेम सुधा.सागर बन...भींगे तन-मन..
भावों से नाजुक शब्द को बहुत ही सहजता से रचना में रच दिया आपने.........
nice poem..happy holi:)
Dhanyavaad Ankur aapki sarahna ke liye...aapko bhi Holi ki Shubhkaamnaayein...
ये महासागर ऐसा ही होता है जिसमें डूबकर ही जी लिया जाता है .. अच्छी लगी.
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