वो आँख में जलता है -
तो आंसू हो जाता है ,
आग को पानी होते हुए-
कई बार मैंने देखा है।
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जब भी मैं तुम्हारी नज़रों में -
उठने की कोशिश करता हूँ,
अपनी ही नज़रों से गिर जाता हूँ
अश्रु हरदम अधोमुखी होते हैं ।
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आज कल वो अपनी पलकें -
खोलता नहीं,
उसे पता है-
मुझे उसकी आँखों में कैद होना ,
अच्छा लगता है।
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बस यूँ ही -
करवट बदलते,
मेरी रात गुजरी है...
तकिये की सिलवटों में -
मैं अपने चेहरे की,
झुर्रियां ढूंढता रहा।
9 टिप्पणियां:
बेहद उम्दा क्षणिकायें…………एक से बढकर एक हैं।
आज कल वो अपनी पलकें -
खोलता नहीं,
उसे पता है-
मुझे उसकी आँखों में कैद होना ,
अच्छा लगता है।
क्षणिकायें एक से बढकर एक सुन्दर लेकिन इसका तो जवाब नहीं लाजवाब.....
हर क्षणिका गज़ब की ...
बस यूँ ही -
करवट बदलते,
मेरी रात गुजरी है...
तकिये की सिलवटों में -
मैं अपने चेहरे की,
झुर्रियां ढूंढता रहा।
बहुत सुन्दर भाव
बस यूँ ही -
करवट बदलते,
मेरी रात गुजरी है...
तकिये की सिलवटों में -
मैं अपने चेहरे की,
झुर्रियां ढूंढता रहा।... in karwaton ko wahi janenge , jo talashte hain apna chehra waqt ke haashiye per
bhut hi khubsurat panktiya hai...
Behtreen Kshanikayen......
आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
परखना मत ,परखने से कोई अपना नहीं रहता ,कुछ चुने चिट्ठे आपकी नज़र
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क्षणिकाओं में सुन्दर बिम्ब लिए हैं.हर क्षणिका बेमिसाल.
sabhi rachnaye sunder hai ......
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