जानती हो जानम, मेरे कमरे के हर कोने में तुम्हारी खिलखिलाहट बसी हुयी है....गुलदान मुझसे यूँ बातें करते हैं ज्यूं उनमे सजे गुलाब तुम्हारे होंठ बन गए हों....मेरे लिए तुम नगमा हो...गीत हो....संगीत हो....चित्र हो....तस्वीर हो...स्केच हो.....और उन सबमे बिखरा हुआ रंग भी तुम्ही हो...तुम मेरे लिए कुरान की आयत हो...मेरी इबादत हो....मेरी हर खुबसूरत आदत और मुझ पर खुदा की बेइंतहा इनायत हो....तुम मेरे दिल का सुकून हो....मेरा चैन हो और आराम हो ....तुम मेरी जिंदगी का पूर्णविराम हो....तुम हो, तुम्हारा ख्याल है ओर चाँद रात है....
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तुम्हारी आँखें हैं या कमल की नशीली पंखुरियाँतुम्हारी जुल्फें हैं या मेरे चेहरे पर बिखरी धूप को ढंकती हुयी बदली......बाहें हैं या फूलों से लदे झूले...तुम्हारा बदन है जैसे मेरी अराधना का मंदिर और तुम्हारी खनकती आवाज़ है जैसे उस मंदिर में बजती हुयी सुरीली घंटियाँ...मैं तुम्हारा पुजारी, बस तुमही पूजा में तल्लीन...मेरी पूजा स्वीकार करो हे देवी!
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जानती हो जानम,यहाँ एअरपोर्ट पे बैठा हुआ मैं आँखें बंद कर तुम्हे ही देख रहा...धुले केश तकिये के पीछे बिखरे परे हैं और चाँद से चेहरे पे एक ग़ज़ब का मोहक सौंदर्य अपना रंग मुस्कराहट के गुलाल में घोल बिखरा रहा है...गुलाब की नाज़ुक पंखुरिओं से तुम्हारे अधर पर अभी भी मेरे नाम की ओस बूँद नमी पसारे हुए है...तुम्हारे काजल से कारे अंखियों में पिया मिलन की आस द्रवीभूत हो रही.....लगता है आज फिर बरसात होगी....तुम हो, तुम्हारा ख्याल है और चाँद रात है...तुम हो तो हर दिन होली और हर रात शब् ए बरात है....
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तुम हो, तुम्हारा ख्याल है और चाँद रात है...हवा गुनगुना रही....तेरी याद के हरसिंगार मेरे मानस के पटल पर बिखर कर मुझे अपनी खुशबु से नहला रहे .....कहीं मयूरपंखी ख्वाब आँख के किनारे बस जाना चाह रहे.... कहीं कोई मंद मदिर सी हवा जैसे गुज़ारिश कर रही हो की तुम्हारी जुल्फों में उसे गुम होने दिया जाए।
जानती हो जानम, तुम्हारी खिलखिलाहट कौंधती धनक सी रात की तारीकी को रौशनी का ज़खीरा भेंट करती है....तुम जो दबे पाँव आती हो ख्यालों के चिराग टिमटिमा जाते हैं और जब मैं तुम्हारी बाहों के अमरबेल में जाकर जाता हूँ तो वो जकरन मुझे बंधन मुक्त करती है जिंदगी की हरेक परेशानी से.......तुम हो, तुम्हारा ख्याल है और चाँद रात है....
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तुम हो, तुम्हारा ख्याल है और चाँद रात है....चारों तरफ सुबह का उजाला अपनी छटा बिखेर रहा, नन्ही सुकोमल सूर्य किरने किसी अबोध बच्चे की खिलखिलाहट की तरह पसर रही बिना किसी देश,जाति,धर्म,उम्र,समाज की परवाह किये बगैर....खिड़की के बाहर पक्षियों का शोर सुबह को आमंत्रण देता हुआ.....ऐसे में मेरा मन....ढूंढें तुम्हे जंगल,आकाश,वन....मैं पूछ रहा इस शहर की हर गली से.....की हे गलियां...हे चौबारा...हे मंदिर मस्जिद और गुरुद्वारा....हे अट्टालिकाएं हे ईमामबारा ....कहीं तुमने देखी मेरी दिलदारा...मेरी जान ऐ अदा....मेरी जहाँआरा...उसके बदन की खुशबु अभी भी यहीं है......उसके सुकोमल क़दमों के निशाँ अब भी यहीं हैं....उसके मन के उदगार अब भी यहीं गुंजायमान हैं.....रुई के फाहों से नाज़ुक मुलायम उसके खयालात अभी भी बादलों सा तीर रहे हैं....तुम वह सब मुझे वापिस दे दो....वह सब मेरा है....सिर्फ मेरा....उसके एहसास मेरे, उसकी व्यथा मेरी,उसकी खिलखिलाहट और दर्द दोनों की कथा मेरी....उसके बदन को छू कर गुजरी हर हवा मेरी.....उसकी सांस मेरी,उसकी आस मेरी....उसके थरथराते होठों के पलाश मेरे,उसकी आँखों के समंदर की तलाश मेरी...उसके दिल में धड़कन मेरी ,उसकी जुल्फों में उलझन मेरी.....वो है तो मैं हूँ जिंदा....उसकी जिंदगी की हर चुभन मेरी...मुझे वो सब लौटा दो जो वो छोड़ गयी थी कुछ साल पहले मेरी ही तलाश में भटकती हुयी यहाँ.....तुम हो ,तुम्हारा ख्याल है और खिली कनेर के फूल सी धुप है....मेरी आँखों में बंद तुम्हारा बस तुम्हारा ही अप्रतिम रूप है....
- नीहार
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