बुधवार, 3 दिसंबर 2008

तुझको छू कर जो आती हवा

गुन गुन गुन गुन गाती हवा, कानो में कुछ कह जाती हवा।
तेरी खुशबु तुझ से ही चुरा, फिर उसको मुझ तक ले आती हवा।
हर फूल में हर पत्ते पत्ते में,मुझको तेरी झलक दिखलाती हवा।
मैं खो जाता हूँ यादों में तेरी,तुझमे मेरी याद लिए खो जाती हवा।
जो दिल पे चोट के निसान बने,उनपे मलहम सा बन जाती हवा।
मैं साँसे जो ले लेता हूँ कभी, उनमें तेरी खुशबु ले आती है हवा।
हर पल हर दम तेरी यादों से ,भीतर तक मुझको नहलाती हवा।
ये हवा बनी मेरी खातिर , मेरे हर मर्ज़ की बनी है यही दवा।
तुझको छू कर जो आती हवा,मुझको जीवन वो दे जाती हवा।

2 टिप्‍पणियां:

नीरज गोस्वामी ने कहा…

जो दिल पे चोट के निसान बने,उनपे मलहम सा बन जाती हवा।
मैं साँसे जो ले लेता हूँ कभी, उनमें तेरी खुशबु ले आती है हवा।
बहुत खूब...अच्छी रचना....
नीरज

Dr. Ashok Kumar Mishra ने कहा…

अच्छी रचना है आपकी । गजल पर मैने भी एक लेख िलखा है । समय हो तो उसे पढें और अपनी राय भी दें-

http://www.ashokvichar.blogspot.com