रविवार, 14 जुलाई 2013

फूल रंग रंग के इत उत िखल जात हैं......

अधर चुमत लट उडत इधर उधर,
हवा में जैसे साँप डोलडोल जात हैं।
नैन कजरारे तोरे काजर से लबलब,
पलक उठा के मेरी भोर लिये आत हैं।
बोली तेरी मधुर शहद सी मीठी मीठी,
कोयल भी गायन में पाये जात मात हैं।
तू जो रक्खे पाँव ज़मीन पे ओ रूपसी,
फूल रंग रंग के इत उत खिल जात हैं।

- नीहार(चंडीगढ,१३ जुलाई २०१३)

6 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत खूब ।

vikash ने कहा…

Bahut hi badhiya ... jitna bhi tarif ki jaye kam hai.

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत सुन्दर...

Vijuy Ronjan ने कहा…

संगीता जी , नमस्कार..... सराहना के लिये धन्यवाद ।

Vijuy Ronjan ने कहा…

धन्यवाद विकास ।

Vijuy Ronjan ने कहा…

नमस्कार कैलाश जी,सराहना के लिये धन्यवाद ।