मंगलवार, 30 अक्तूबर 2012

पलकों के झूले और ख्वाब......


मन कर रहा चाँद को बुलाने का ,

पलकों के झूले पे ख्वाब कर झुलाने का ।

नींद नहीं आती है क्यूँ,

ये हमको मालूम नहीं –

वादा था उनकी अपने ज़ुल्फों तले सुलाने का ।

मौसम भी इन दिनों न जाने,

क्यूँ भींगा भींगा रहता है –

है आरोप उसपे मेरी आँख की नमी चुराने का ।

मैं धूप को ओढ़े बाहर बैठा,

चिड़ियों को दाने चुगाता हूँ –

मन करता पाखी बन तेरे पास ही उड़ आने का ।

पीर पर्वत हो गयी न जाने,

क्यूँ इस  तमस की रात में –

शायद आया मौसम उनकी यादे चराग  जलाने का।

आँखें मेरी हो गयी देखो,

नीर भरी दुख की बदरी –

मन करता है सावन करके उनको फिर बरसाने का ।

_ नीहार ( चंडीगढ़, 28 अक्तूबर 2012)
 

14 टिप्‍पणियां:

संगीता पुरी ने कहा…

मन तो मन ही है ..
बहुत सुंदर अभिव्‍यक्ति ..

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

जो मन कहें वो करें ज़रूर.....

बहुत प्यारी अभिव्यक्ति...

अनु

विभूति" ने कहा…

बहुत ही खुबसूरत और प्यारी रचना.....

Vaanbhatt ने कहा…

सुंदर अभिव्‍यक्ति...

Vijuy Ronjan ने कहा…

Sangeeta ji ,aapki sarahna ke liye dhanyavaad....

Vijuy Ronjan ने कहा…

Anu,aap khud bahut achha likhti hain....aapki sarahna protea an deti hai....dhanyavaad.

Vijuy Ronjan ने कहा…

Sushma ji namskar....kafi Dino ke baad aaya blog pe...Facebook pe kafi post Kia tha is beech me ...kuch nayi evam kuch purani....ye mujhe v pasand hai....aapki sarahna ke liye dhanyavaad.

Vijuy Ronjan ने कहा…

Vanbhatt ji...namskar aur dhanyvaad sarahna ke liye....upkrit hua.

Amrita Tanmay ने कहा…

मन को भिगोती हुई अति सुन्दर रचना..

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत खूबसूरती से उकेरे हैं एहसास

Vijuy Ronjan ने कहा…

धन्यवाद अमृता...बहुत दिनो के बाद आ पाया ...वैसे आपकी रचनाएँ पढ़ जरूर लेता आई पैड पे पर कमेंट नहीं कर प रहा था....यात्रा अनंत थी और काम की अधिकता भी...कोशिश करूंगा की रहूँ उपलब्ध और अपध्ता रहूँ पढ़ता रहूँ...पुनः धन्यवाद।

Vijuy Ronjan ने कहा…

संगीता जी ...नमस्कार और धन्यवाद सराहना के लिए....

Suman ने कहा…

आँखें मेरी हो गयी देखो,

नीर भरी दुख की बदरी –

मन करता है सावन करके उनको फिर बरसाने का ।
sundar ...

Vijuy Ronjan ने कहा…

सुमन जी, सराहना के लिए शतशः धन्यवाद .....