आइये हुज़ूर और खाइए खजूर बाप बाप करके जिसे हमने लगन से बनाया है,
सूखी रोटी हम सभी खाते रहे उम्र भर आपको तो मेवा और फल ही खिलाया है।
सिखाया था हमको माँ बाप और भाई ने ,चाचा ने , मामा ने, संबंधों की गहराई ने,
कलियुग में नेता ही ईश्वरीय अवतार हैं,बाकि सब लोग तो ढोल हैं, पशु हैं, गंवार हैं,
आप ही हैं असली देव, आप ही सरकार हैं,बाकी सब देवता गण झूठ हैं मक्कार हैं।
आपकी ही भक्ति में अपनी शक्ति खोज हमने तो सारे दुखों को उसमे ही डुबोया है,
सूखी रोटी हम सभी खाते रहे उम्र भर आपको तो मेवा और फल ही खिलाया है।
पंचवर्षीय चुनावी युद्ध जब आप लड़ते थे, शर्म से हमारे गड़े सर और भी गड़ते थे,
भीख की कटोरी में भूख की राजनीति,धर्म की छाती पर अधर्म की ताज नीति,
नीति में अनीति और अनीति में कुनीति, इन सभी में पल रही आपकी कूट नीति,
जिन के चक्र तले हम सभी ने बचपन से अपनी इक्षाओं को बलिवेदी पर चढ़ाया है,
सूखी रोटी हम सभी खाते रहे उम्र भर, आपको तो मेवा और फल ही खिलाया है।
जब भी आये प्रभु आप हमारे द्वार पर,बैठे रहे आप अपनी ही लम्बी मोटर कार पर ,
गन्दी नाली, बदबू और मच्छरों के देश में,बीमारी बदहाली और पिछड़े परिवेश में,
आदमी की आदमियत और उसके भदेस में,आपकी ही ठोकर और आपकी ही ठेस में,
अपने आंसुओं को आपकी वादाओं की भेंट दे, उनपे जीना हमको आपने सिखाया है,
सूखी रोटी हम सभी खाते रहे उम्र भर, आपको तो मेवा और फल ही खिलाया है।
बोलो प्रभु कब सुनोगे तुम अर्जी हमार ,कब जा के लगेगी हमारी भी नैया उस पार,
कब मिलेगा खाने को हमें दोनों शाम,कब मिलेगा हमरी मिहनत का हमें सही दाम,
कब आएगा ज़िन्दगी में चैन और आराम,कब लगेगी यह ज़िन्दगी हमें एक इनाम।
कब हम निकलेंगे बाहर उस कुंए से , जिसमे जाति धर्म का विष आपने मिलाया है,
सूखी रोटी हम सभी खाते रहे उम्र भर , आपको तो मेवा और फल ही खिलाया है।
1 टिप्पणी:
वाह्! बहुत ही बढिया रचना.....
जय हो नेता जी की :)
एक टिप्पणी भेजें