कुछ बात करो मुझसे तुम,मेरा मन रूखा रूखा है,
प्रेम पयोधि पीकर भी, देखो लगता भूखा भूखा है।
झर झर झर निर्झर बहता,कानो में मेरे है कहता ,
तुम बिन मरू का सा है जीवन,सब सूखा सूखा है।
प्रेम पयोधि पीकर भी , देखो लगता भूखा भूखा है।
फूल फूल पत्ते पत्ते ,कानो में कहते फ़ुसक फ़ुसक,
मन के अन्दर ज्वाल सरीखा , जैसे फूका फूका है।
प्रेम पयोधि पीकर भी, देखो लगता भूखा भूखा है।
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तन्हाई को पीकर मैं खिलता रहता हूँ एक धूप सरीखा ,
मेरे भीतर का तम किसको दिखता है यह वो ही जाने।
पीर परायी मेरे आँख से बहती गंगा जमुना की धारा बन,
मेरे भीतर एक आग का दरिया बहता रहता है वो ही जाने।
चन्दन चन्दन खुशबु बन कर,बादल बादल उड़ता हूँ मैं,
तपती धरती का दर्द समेटे, मैं क्यूँ उड़ता हूँ यह वो ही जाने।
उसको पाकर उसमे रंग कर मैं पारिजात सा खिल जाता हूँ,
मैं खुद को उसमे क्यूँ खो देता हूँ ,यह मै ना जानू वो ही जाने।
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मैं सन्नाटा बुनता हूँ...
जो भी उल्टा सीधा मन में आता,उसको हर घडी मैं धुनता हूँ।
मैं सन्नाटा बुनता हूँ...
जब भी तुमसे मैं मिलता हूँ , अधरों पे बंशी सा मैं बजता हूँ ,
तेरी गोदी में सर रख कर मैं, सागर की बस ठाठें ही सुनता हूँ।
मैं सन्नाटा बुनता हूँ...
मुझको जब भी तेरे ख्वाब बुलाते हैं , आकर मेरी तन्हाई में,
मैं चुप चुप से तेरी आँखों में , बस डूबता हूँ और उतराता हूँ।
मैं सन्नाटा बुनता हूँ...
मैं कहता रहता हूँ तुमसे ही अपने दिल की सारी बातें अक्सर ,
तुम जो कुछ भी कह नहीं पाते, मैं उनको भी अक्सर सुनता हूँ।
मैं सन्नाटा बुनता हूँ...
--नीहार
2 टिप्पणियां:
कुछ तो है इस कविता में, जो मन को छू गयी।
बहुत दिनों बाद आपके ब्लॉग पार आना हुआ
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