गुरुवार, 29 जनवरी 2009

यादों की तरह आके रुलाते क्यूँ नहीं,
मौसम की तरह मुझ पर छाते क्यूँ नही।
मैं तेरे सपनो में खो जाता हूँ हर घरी जानम,
उन् सपनो में ख़ुद को तुम पाते क्यूँ नहीं।
जिस तरह बिजुर्गों को नहीं छोरती है खांसी,
उस तरह तुम भी मुझे हो सताते क्यूँ नहीं.
वो जो एक गीत लिखा था मैंने तेरी ही खातिर,
उस गीत को मेरे लिए तुम फ़िर गाते क्यूँ नहीं।
मुझे देख देख बचपन में जो गुलाबी थे होते,
अब देख के मुझको तुम हो लजाते क्यूँ नहीं।
मैंने तुम्हे रक्खा है पलकों पे आंसू की तरह
तुम भी मुझे आँख में आंसू सा लाते क्यूँ नहीं।
मैंने तुझे पाया है अपने खुदा से नेमत में,
तुम भी मुझे अपनी दुआओं में पाते क्यूँ नहीं।

1 टिप्पणी:

अनिल कान्त ने कहा…

बहुत ही सुंदर चाह ...आपकी चाह पूरी हो .....


अनिल कान्त
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति