शनिवार, 21 जून 2008

कभी अपने हाथों की लकीरों से चुरा लूँ तुमको

कभी अपने दामन में ताओं सा सजा लूँ,

कभी तपती धुप में सावन सा बरस जाओ तुम भी

कभी ठंडक में गिलाफों का सा मजा लूँ।

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