शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2013

अपनी आँखों से पलकों की नक़ाब उठा दो....


अपनी आँखों से पलकों की नक़ाब उठा दो,
धूप की चाहत है, तुम मेरी सुबह तो ला दो।
मैं चुन रहा था रात भर तेरे लब पे खिले गुंचे,
दिन के उजालों मे भी ज़रा लब तो हिला दो।
मुझको सुकून देती है तेरी ज़ुल्फों की घनी छांह,
है कड़ी धूप बहुत तुम जरा जुल्फें तो फैला दो।
अब एक लम्हा भी नहीं रहा जाता है तेरे बिन ,
आओ और मेरी साँसो के मुरझाए फूल खिला दो।
बरसों का हूँ प्यासा मैं भटका हूँ गर्म रेत सा ,
अपने लब से तुम मुझे आज अमृत तो पिला दो।
टूट जाती है मेरी सांसें अक्सर यूं रह रह कर ,
 
टूटती  साँसों में तुम अपनी सांसें तो मिला दो ।

-    नीहार

गुरुवार, 14 फ़रवरी 2013

मुतमइन हूँ बहुत.......


मुतमईन हूँ बहुत –

सांस लेता नहीं ,

चलता रहता हूँ पर -

मैं हूँ जीता नहीं....

पढ़ लिया सारी दुनिया के,

वेद औ क़ुरान –

जिंदगी की किताब ,

मेरी कोई गीता नहीं......

मेरे भीतर धधकती है,

ज्वाला सी जो –

उसमें चिंगारियाँ हैं,

पर  पलीता नहीं ...

मुट्ठियों में लिए हूँ –

खुद के चिता की मैं राख़,

है  सजने सँवरने का –

मुझको  सलीका नहीं।

-    नीहार

शनिवार, 9 फ़रवरी 2013

यूं नींद में गफ़िल है मेरी जान ए तमन्ना,
जैसे आज है ये सुबह इतवार की....
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खोलोगी जो तुम आँख तो निकल आएगा सूरज,
तेरी पलकों ने बादल हो के उन्हे ढाँप रक्खा है....
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बस तेरी ही आरज़ू थी कई जन्मों से मुझे जानम,
जो पा लिया तुझे तो बस अब कोई आरज़ू नहीं....
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तू दबे पाँव चली आती है मुझ तक अक्सर,
मैं बंद पलकों से तेरी आहट सुन रहा हूँ.....
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सूरज से नोंच कर एक मुट्ठी धूप चुरा लिया,
यूं अपनी जिंदगी को मैंने खुशनुमा बना लिया....
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तुमको पाने के बाद कुछ और न पाने की चाह की,
खुद को खो देने का डर अब सताता नहीं मुझे.......
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शनिवार, 2 फ़रवरी 2013

सोने सी धूप और आँख का वज़ू करना....

तेरे आरिज़ पे बिखरा जो -
तबस्सुम का गुमा देता है....
मेरी आँख का आँसू है,
जो तूने पीने की कोशिश की है।
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आह तेरा जागना और -
यूं मुझ से लिपट जाना .....
ये ख्वाब तो फिर ख्वाब में,
जीता रहूँ तमाम उम्र ।
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 तेरे रुख से जो ज़ुल्फों को -
हटा दिया मैंने.......
धूप सोना हो के मुझसे,
लिपट गयी है आज।
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तुम सोचते होगे कि -
मैं तुम्हें इतना सोचता क्यूँ हूँ....
जो न सोचा करूँ तुमको,
तो फिर जीने का मक़सद नहीं मेरे पास।
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आँखें बंद किए मैं -
बस तुझे देख रहा हूँ.....
पलकें इस तरह मेरी,
वज़ू करती हैं आजकल।

- नीहार (चंडीगढ़,जनवरी 2013 की कोहसार मे लिपटी सुबह )