सोमवार, 31 जनवरी 2011

बर्फ पिघल कर कतरा कतरा फिर से पारा पारा हुआ

बर्फ पिघल कर कतरा कतरा फिर से पारा पारा हुआ,

चाँद गगन में रात को फिर तन्हा हुआ आवारा हुआ।

रात भर रोता रहा वो तकिये में अपने सर को दिए,

उसकी आँख का एक एक आंसू जलता अंगारा हुआ।

मुस्कुरा दे जो वो अगर तो बाद ए सबा है झूमती ,

खिलखिलाता है तो फिर जैसे जश्न ए बहारा हुआ।

उसका चेहरा चाँद है और जुल्फें हैं घनी सी बादली,

उसकी सांसें खुशबुओं का जैसे की लश्कारा हुआ।

मुझको उसके साँस की आहट की आदत हो गयी,

उसकी पलकों पे सज गया और फिर सितारा हुआ।

जो खुद का ही न हो सका इस दुनिया में आज तक,

वो मुसाफिर मरते दम तक सिर्फ है तुम्हारा हुआ ।

-नीहार

शनिवार, 22 जनवरी 2011

किसलय क्यूँ है उदास

किसलय क्यूँ है उदास -

बुझ नहीं रही अनबुझी प्यास....

सागर सागर भटका बादल,

प्यासा है फिर भी आकाश।

पत्तों से टपका एक बूँद -

रात ने ली जब आँखें मूँद....

उम्र फिर बन कर दरिया अनेक,

बहता अबाध पत्थर तराश।

सूरज की आँख ने रोया धूप -

मन का हर गया तिमिर कूप...

जीवन का हर गया सब विषाद,

अग्नि पीकर खिला ज्यूँ पलाश।

चन्दन से लेता है गंध उधार -

फिर लाता बेमौसम बहार...

प्रकृति का निखारता रंग रूप,

सुंगंधित करता फिर अपनी श्वास।

-नीहार

अक्स


यह मेरा अक्स है या उसका या हम दोनों का....यह रेखाचित्र मुझे उसतक पहुंचाता है....
-नीहार

वियोग

यह रेखाचित्र मैंने एक सप्ताह पूर्व बनाया और इसका नं 'वियोग' रक्खा है।

गुरुवार, 13 जनवरी 2011

तुम हो तुम्हारा ख्याल है और चाँद रात है....

कडाके की ठण्ड...कांपती सी हवा जो जम कर टंग सी गयी पेड़ों की फुनगियों पे....जंगल पहाड़ सब ऊंघ रहे हैं...चारों तरफ बिलकुल नीरवता व्याप्त है....दूर कहीं सड़क पे भागती हुयी गाड़ियों की आवाज़ सहसा जीवंत कर देती है पूरे माहौल को ....मन प्राण उड़कर तुम तक पहुचने को आतुर हो उठता है।
मेरी सांसें हैं की गर्म होकर ऊर्ध्वमुखी हो गयी और सुफेद बकुलों सी व्योम की गहराईयों में अपने पंख पसारे परवाज़ कर रही....ढूंढ रही है मेरी आँखें ...कुहासों के एक एक लिहाफ को उठा कर...सिर्फ तुमको...फूलों में,त्रिन्मूलों में,पादप श्रेणियों में,हर जगह बिखरी हुयी ओअस बूंदों में ढूंढता हूँ बस तुम्हारा ही चेहरा......
तुम हो, तुम्हारा ख्याल है और पिघलती रात है....कुहासे की चादर,ओअस की बूँदें और तुम्हारे प्यार में पगा ये प्रभात है।
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तुम हो,तुम्हारा ख्याल है और चाँद रात है....
सर पे नीला आसमान है और तारों से बुनी चादर ओढ़े चांदनी सी झिलमिल रात....हवाओं में तुम्हारी खिलखिलाहट की अनुगूंज मुझे मदहोश कर जाती है। मेरी आँखों के आगे तुम्हारे रूप का विस्तार किरणमयी हो जाता....मैं करवीर के गुंचों सा खिल जाता। मेरी सांसें सुरभित हो जाती तुम्हारी साँसों से...तुम चाँद हो जाती और मैं उस चाँद की आँख से ढलकी अश्रु की एक बूँद .... मोती सा जो तुम्हारी आँख की सीप में बंद हो जाना चाहता है...जीवन भर के लिए...तुम हो, तुम्हारा ख्याल है और चाँद रात है....महकी हुयी हवा...गुनगुनाती चांदनी और सजीली तारों की बारात है....
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तुम हो, तुम्हारा ख्याल है और महकी हुयी सुबह है...कुहसार की चादर ओढ़े नगर, शहर, गाँव...ढूंढ रहा है चंचल चपल सूर्य की नाचती रंगों की आभामयी गरम नरम छाँव...खेतों में सरसों के पीले फूल हवा के साथ अठखेलियाँ कर रहे...सब तरफ शान्ति है...धीरे धीरे सुबह का सूरज सरसों के पीले फूल सा फ़ैल गया चहुँ ओर ....ये तुम्हारा ख्याल है या अमलताश के बिखरे हुए फूल....ये तुम हो या सुबह की महकी हुयी हवा....ये तुम्हारा आलिंगन है या खुद को खुद में समेट लेने की चाह ....ये मेरे कानो में तुम्हारी आवाज़ की खनक है या किसी मंदिर में बजती घंटियों की झंकार....ये तुम मुझे बुला रही हो, या हवा तुम्हारी पाती मुझे पढ़ कर सुना रही है...
तुम हो, तुम्हारा ख्याल है और मदहोश करती सर्द हवा...ये तुम्हारे गेसुओं की खुशबु है जो बन गयी है मेरे हर दर्द की दवा ।
- नीहार
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